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अपनी इस ग़ज़ल के साथ सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ

आये लौट आज़ादी आज अपनी जवानी में ।

के फहरा दो तिरंगा फिर हवाओं की रवानी में ।

उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।

हिमालय की पनाहों में शहीदों को सलामी दे ,
कोई तो गीत गूँजेगा आज गंगा के पानी में ।

बनायें उनके सपनों का चलो आज़ाद भारत हम ,
जिन्होंने ख्वाब देखा था ये अपनी जिंदगानी में ।

आँखों में नमी भरकर लिए मुस्कान होंठो पर ,
चलो कुछ देर बैठे हम फिर उनकी मेजबानी में ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 2:40pm

शब्दों में ओज और ऊर्जा की जितनी आवश्यकता आज है उतनी स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं रही थी. 

पहले दुश्मन भौतिक रूप से दिखता था, तो दीखता भी था. अब दिखता तो अवश्य है, किन्तु दीखता नहीं.
आपकी रचना प्रवाह में होने की दशा को प्राप्त करना चाहती है. जबकि आपने इसके अरमानों पर पानी फेरा हुआ है. रचना को कृपया उसका हक दें.  पंक्तियों में १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ की मात्रिकता को निभायें, फिर मज़ा देखिये.
शुभेच्छाएँ
 

Comment by Neeraj Nishchal on August 19, 2013 at 11:06pm

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी बहुत बहुत अनुग्रह आपका ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 19, 2013 at 11:06pm

आदरणीय ब्रिजेश जी बहुत बहुत आभार
कोशिश करूंगा की आगे से बहार भी लिख दूँ ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 19, 2013 at 11:04pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार जीतेन्द्र भाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 19, 2013 at 8:37am

बेहतरीन भाव ..शहीदों की मेजवानी हमारा परम कर्तव्य है ..एक से बढ़कर एक लाजबाब शेर ...सक्षम हैं आपके भाव को पाठकों तक पहुचाने में ..सादर बधाई के साथ 

Comment by बृजेश नीरज on August 19, 2013 at 7:34am

बहुत ही सुन्दर भाव लिए है आपकी यह रचना। गज़ल के साथ उसकी बहर का जिक्र अवश्य किया करें जिससे कि पाठक शिल्प पर भी ध्यान दे सके। गेय रचना लिखते समय भाव के साथ साथ उसका शिल्प भी महत्वपूर्ण होता है।
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 6:29pm

उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।..........बहुत ही सुंदर भाव

बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:44am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका बहुत बहुत
हार्दिक शुक्रिया ,
आप जादू की बात करती हैं पर सारा जादू तो परमात्मा
का रहता है हम कैसे जीते हैं कैसे बोलते हैं
कैसे देखते हैं कैसे सोचते हैं ये सब अपने आप
में एक बहुत बड़ा जादू है ,
और कविता उसकी देन है कोई भी कविता देख कर
हमे ये ख़याल आ जाता है कैसे बन गयी ये
इतनी सुन्दर कविता , ज़रूर वो हमे जादू जैसा लगता है
पर अगर हम खुद भी उसका एक करिश्मा हैं
उसका कोई जादू हैं
हम क्यों हैं कब तक हैं कैसे हैं हमे नही पता फिर भी हम हैं
इस से बड़ा चमत्कार और क्या होगा ।
_/\_प्रणाम ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:32am

भाई विजय जी आपका बहुत बहुत अनुग्रह
आप जो विश्लेषण कर गए उसका
तो पता मुझे भी नही था ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:28am

बहुत बहुत धन्यवाद बहुत बहुत आभार
सुमित भाई ।

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