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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 34(Closed with 1256 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।


 इस बार से महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

पिछले 33 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 34 

विषय - "सावन"
आयोजन की अवधि-  शुक्रवार 09 अगस्त 2013 से शनिवार 10 अगस्त 2013 तक 

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
 
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 34 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 09 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आ0 विजयाश्री जी,
//उल्लास भरे
हर घर के द्वार
सावन मास//
वाह! खूबसूरत हाईकू। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

रिश्तों में हो प्यार की फुहार तो सावन है जिन्दगी,
मिट जाये वतन के वास्ते तो पावन है जिन्दगी,
जगत में मरना मिटना तो सबको है इक दिन यहां,
काम आ सकें किसी के तो मन भावन है जिन्दगी।
- दयाराम मेठानी

वाह वाह क्या बात है

बधाई

आपकी अभिव्यक्ति का सादर स्वागत है, आदरणीय दयारामजी.

आपसे बहुत कुछ सुनने की इच्छा बलवती हो गयी है.

सादर

आ० दयाराम मेठानी जी 

महोत्सव में खूबसूरत मुक्तक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई.

बहुत खूब दयाराम जी देश भक्ति और सद्भावना के रंगों से रंगा सुन्दर कथ्य 

आदरणीय  दयाराम मेठानी जी, सुन्दर मुक्तक हुआ है, सादर बधाई स्वीकारें । 

क्या बात है आदरणीय वाह वाह वाह

सादर बधाई स्वीकारें

बहुत सुन्दर लिखा आदरणीय अरुण जी ।

आ० नीरज मिश्रा जी.

कृपया टिप्पणी को मेन थ्रेड में पोस्ट न करें ... जिस रचना पर टिप्पणी देनी है उसी के नीचे रिप्लाई बॉक्स खोलें व उसमें पोस्ट करें.

अन्यथा टिप्पणी प्रबंधन स्तर से हटा दी जायेगी.

 

आदरणीय विद्वान मित्रों को प्रणाम निवेदित करते हुए, प्यारे भाईजी सौरभ पाण्डेयजी, प्राचीसिंहजी व बागीजी समेत ओ बी ओ के तमाम  सदस्यों से विलम्ब के लिए क्षमा मांगते हुए आज लाइव महोत्सव ३४ में एक  ताज़ा गीत/ गाना  के साथ उपस्थित हूँ . आशा है आप  स्थान देंगे

जय हिन्द !


-जब सावन आग लगाता है-

जब सावन आग लगाता है,
जब सावन आग लगाता है


वज्र टूटते हैं छाती पर, सांसों पर बन आती है
चुपके चुपके ख़ून के आँसू आँखें रोज़ बहाती हैं
अरमानों के फूल भी काँटे बन जाते उन लम्हों में
विरहन को जब परदेसी सजना की सुधि सताती है
दुनिया का सारा चन्दन भी  
जलन मिटा नहीं पाता है
जब सावन आग लगाता है,
जब सावन आग लगाता है



तड़प तड़प कर जागा करते, सुलग सुलग कर सोते हैं
सुबक सुबक कर, सिसक सिसक कर, फूट फूट कर रोते हैं
लिपट लिपट कर रह जाते हैं अपनी ही परछाई से
तन्हाई के शोक पर्व में दामन ख़ूब भिगोते हैं
अंग अंग अंगारा बन कर
तृषित देह दहकाता है
जब सावन आग लगाता है,
जब सावन आग लगाता है



घर तो घर, बाहर भी पग पग पर पीड़ा का अनुभव है
सूनापन ही सूनापन  है, न  झूला  न कलरव है
अंतर्व्यथा कथा लम्बी है, कौन सुनेगा "अलबेला"
तिनका तिनका बिखर रहा, सपनों का हर इक अवयव है
भंवरों का गुनगुन भी बैरी
दिन भर जान जलाता है
जब सावन आग लगाता है,
जब सावन आग लगाता है

{ मौलिक व अप्रकाशित }

- अलबेला खत्री

वोह तो ठीक है  अलबेला खत्री, क्षमा वमा तो लोग कर ही देंगे,  लेकिन गीत के मुखड़े में मज़ा नहीं आया .........

जब  सावन आग लगाता है

की जगह  -

सावन जब आग लगाता है  कर के देखो ........शायद  कुछ  बात बने


सादर

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