For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रचंड गंग धार यूँ बढ़ी बहे बड़े बड़े

प्रचंड गंग धार यूँ बढ़ी बहे बड़े बड़े
बहे विशाल वृक्ष जो थे उंघते खड़े खड़े  

बड़ी बड़ी शिलाओं के निशान आज मिट गये
न छत रही न घर रहा मचान आज मिट गये
हुआ प्रलय बड़ा विकट किसान आज मिट गये
सुने किसी की कौन के प्रधान आज मिट गये

पुजारियों के होश भी लगे हमें उड़े उड़े
प्रचंड गंग धार यूँ बढ़ी बहे बड़े बड़े

मदद के नाम पे वो अपने कद महज बढ़ा रहे
खबर की सुर्ख़ियों का वो यूँ लुत्फ़ भी उड़ा रहे
वहीं घनेरे मेघ काले छा के फिर चिढ़ा रहे
कहीं से आ रही सदा ये मर गया पड़ा रहे

ढकोसला था आस्था का जो तमाचे है जड़े
प्रचंड गंग धार यूँ बढ़ी बहे बड़े बड़े  

मौलिक और अप्रकाशित 


संदीप पटेल "दीप"


 


Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 12:49pm
आप सभी आदरणीय अग्रजों और सम्मानीय सदस्यों का हृदय की गहराइयों से धन्यवाद
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
समयाभाव और कुछ कारणों से समय कम दे पा रहा हूँ सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:34pm

* शब्दों के..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:34pm

अति सुंदर प्रिय संदीप जी, धब्दों के प्रवाह ने कलकल निनाद उत्पन्न कर दिया. दोनों ही पक्ष रचना में सुंदरता से मुखरित हुए हैं, बधाई.........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 9:26pm

प्रस्तुत रचनाकर्म के लिए बधाई,

शुभेच्छाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 11:05pm

आ0 संदीप भाई जी,  ... अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on July 12, 2013 at 5:14pm

अतिसुन्दर प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 4:54pm

प्राकृतिक त्रासदी का कुछ कारण मानव ही है ढकोसलों पर भी खूब प्रहार किया आपने अच्छी रचना ,बधाई आपको 

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 4:24pm

अच्‍छी रचना

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:30pm

वाह-वाह आदरणीय, बहुत ही अच्‍छी रचना हुई है  कुछ जगहों पर कुछ रुकावट हुई जो आप भी जानते ही हैं कि कहां हुई होगी, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service