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बोध गया / प्रेस कांफ्रेंस

हम ले दे के चार मन, दिग्गी मम्मी पूत ।

हमले रो के रोक लें, पर कैसे यमदूत ।

पर कैसे यमदूत, नस्ल कुत्ते की इनकी ।

मार काट का पाठ, पढ़े ये कातिल सनकी ।

मन्दिर मस्जिद हाट, पहुँच जाते हैं बम ले ।

पुलिस जोहती बाट,  भाग जाते कर हमले ॥

मौलिक / अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 5:10pm

आदरणीय सीधा प्रहार कर रही है आपकी कुंडलिया इस देश के प्रशासनिक ढाँचे पर ,आतंकियों पर पुलिस पर सच कहा इन की तो नस्ल ही खराब है ,बहुत पसंद आई ये कुण्डलिया हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 4:47pm

आदरणीय बहुत सुन्दर! यथार्थ को बहुत सुन्दरता से शब्द दिए हैं आपने! आपको नमन!

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 9:50am

maza aa gaya padh kar 

Comment by MAHIMA SHREE on July 11, 2013 at 10:30pm

वाह आदरणीय ..गजब की प्रस्तुती बधाई स्वीकार करें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 10:18pm

वाह वाह ! क्या बात है | अनोखी कुंडलिया छंद, अनोखे शब्द संयोजन, बधाई श्री रविकर भाई -

अपने मन की आबरू, अब नारी के हाथ

पूत कहे तो हां भरू, तब दिग्गी दे साथ 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2013 at 8:42pm

आ0 रविकर भाई जी, वाह! अतिसुन्दर प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by रविकर on July 11, 2013 at 6:51pm

आभार आदरणीय सौरभ जी, श्याम जी, राजेश जी, संदीप जी, अरुण जी ||

जाँचे परखे मामले, मले जाँच-दल हाथ |
किस्मत भी देती रही, अपराधी का साथ |
अपराधी का साथ, हाथ जालिम नहिं आवे |
मिलता नहीं सुराग, तथ्य सच को बहकावे |
पाक बांग्लादेश, नक्सली मार तमाचे |
छुपते आय बिहार, आज आतंकी जाँचे || |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 5:58pm

ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब .. जितना मुखर तथ्य उतना ही स्पष्ट कथ्य ! 

आदरणीय रविकर भाईजी, आपने जिस सहजता से इस छंद-रचना में आम जन की उजबुजाहट तथा अवश-क्रोध को स्वर दिया है, मैं इस हेतु आपको नमन करता हूँ.  आज अविश्वसनीयता इस कदर बढ़ गयी है कि लोगों को अपनी छाया से भय लगता है. उसपर से कतिपय राजनीतिबाजों की असंवेदनशीलता विद्रुप माहौल को और कष्टकारी बनाती है.

वैसे इस मंच पर रचनाओं में शुद्ध राजनैतिक कथ्यों को यथासंभव प्रश्रय नहीं दिया जाता.  किन्तु, आपकी रचना से निस्सृत दर्द आमजन का सनातन दर्द है. जिसे  राजनीति के कतिपय धंधेबाज अपनी करनी से और बढ़ाते दीखते हैं.

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2013 at 5:18pm

आनंद आ गया आदरणीय सर जी वाह सुन्दर सटीक, व्यंग ने तो त्वरित कर दिया ढेरों बधाई स्वीकारे आदरणीय.

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:37pm

आपकी रचना से कुछ पंक्तियां हठात याद आ गई

''तीन दिनों तक चूल्‍हा रोया

चक्‍की रही उदास

तीन दिनों तक कानी कुतिया

रोयी उसके पास''

अगर मुझे ठीक स्‍मरण है तो इसके लेखक बाबा नागार्जुन हैं

वही तेवर आपकी इस रचना में मुझे देखने को मिले हालांकि इसकी पृष्‍ठभूमि अलग है । हार्दिक बधाई आपको, सादर

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