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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 35

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 35 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा, शायर  मीर तकी मीर की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है |

पेश है मिसरा-ए-तरह...

"फिर मिलेंगे  अगर खुदा  लाया"

२१२२-१२१२-२२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
रदीफ़ :- लाया 
काफिया :- अलिफ़ या आ की मात्रा (खुदा, उठा, मिला, वास्ता, रास्ता, क्या, इंतिहा आदि)
आयोजन अवधि :- 24 मई 2013 दिन शुक्रवार से 26 मई दिन रविवार तक 
विशेष:
१.    इस बह्र मे अरूज के अनुसार कुछ छूट भी जायज है, जैसे कि पहले रुक्न २१२२ को ११२२ भी किया जा सकता है | उदाहरण के लिए ग़ालिब की ये मशहूर गज़ल देखिये...
 
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है 
११२२ १२१२ २२
आखिर इस दर्द की दवा क्या है 
२१२२ १२१२ २२
 
२.    अंतिम रुक्न मे २२ की जगह ११२ भी लिया जा सकता है| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 मई दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा में एकदम से नये हैं, अपनी रचनाएँ वरिष्ठ साथियों की सलाह के बाद ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और एक सीमा के बाद बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये गये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  24 मई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


मंच संचालक 
श्री राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

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Replies to This Discussion

वाह वाह वाह 

क्या बात है 

बाद बरसों इसी मुहल्ले में,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,........सच है आना साहब इंतज़ार रहेगा 

दिली दाद क़ुबूल कीजिये भाई साहब 

क्यूँ नहीं संदीप भाई जरुर आयेंगे अगर खुदा लाया. हाहाहा इन्तेजार कीजिये. हार्दिक आभार भाई जी आपका आना ग़ज़ल पढ़ जाना यह दोस्ती प्रियवर सदा निभाना. जय हो भाई जी आपकी कमी खल रही है आयोजनों में.

मैं तो हर आयोजन में रहता हूँ हाँ कुछ बिलम्ब हो गया क्या करें साहब वक़्त ऐसी चीज़ है के हाथ आके भी फिसलती रहती है और हम उसी को सम्हालने का झूठा भ्रम पाले रहते हैं ................लो देखो ये निकल गया फिर से 

हाहाहा बिलकुल सही कहा भाई जी आपने.

मान सम्मान भूल कर बेटा,
शीश माँ बाप का झुका लाया,

वाह क्या जानदार बात कही आपने...
बहुत खूब भाई अरुण जी !!

बहुत बहुत शुक्रिया भाई आशीष जी

आ0 अरून अनन्त भाई जी,  ’दौर बदला बदल गई दुनिया, भेषभूषा अलग बना लाया’ बहुत खूब! अतिसुन्दर गजल।..हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

हार्दिक आभार केवल भाई स्नेह बनाये रखिये.

मान सम्मान भूल कर बेटा,
शीश माँ बाप का झुका लाया,//////////////

आदरणीय अरुण जी, बहुत उम्दा गजल ...बधाई स्वीकार करें । 

आभार अनुज राम शिरोमणि पाठक जी

प्रिय अनंत, दूसरी प्रस्तुति भी लाजवाब बन गई है, बधाई.........

जुल्म धोखाधड़ी नशा लाया,
वक्त बर्बादियाँ उठा लाया,

वक़्त से ताकतवर कोई नहीं है. यही आबाद करता है, यही बरबाद करता है. यह भी सच है कि वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता है.

कहीं जाना पड़ रहा है, शेष गज़ल को बाद में देखता हूँ...........

तीर तलवार से नज़र पैनी,
भीड़ में भेड़िया लगा लाया,

भाव स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं,वाक्य विन्यास भी समझ के बाहर जा रहा है, पुन: गौर करें...

दौर बदला बदल गई दुनिया,
भेषभूषा अलग बना लाया,

वेशभूषा बदलती रहे तो कोई बात नहीं, मानवता अक्षुण्ण रहनी चाहिए. नये दौर पर बढ़िया शेर..........

मान सम्मान भूल कर बेटा,
शीश माँ बाप का झुका लाया,

वाह, वाह वाह......अरुण अनंत जी अब नज़र आये. जितनी तारीफ की जाए कम है..................

बाद बरसों इसी मुहल्ले में,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,

क्या खूब गिरह लगाई है..........बिल्कुल ही जुदा अंदाज में हालात से समझौता, आज की बेबसी और भविष्य पर भरोसा....

शबनमी होंठों का नशा खुद को,
रूह की चाह तक पिला लाया..

वाह !!!!! रूह-आफज़ा सी  मीठास और खुशबू ने तर कर दिया............बधाई.......

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