For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत

सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत॥

मुसाफ़िरों के भी पावों में आबले हैं बहुत॥

ख़ुदा ही जाने मिलेगी किसे किसे मंज़िल,

सफ़र में साथ मेरे लोग तो चले हैं बहुत॥

सियासतों में न उलझाओ क्यूंकि दुनिया में,

ग़रीब आदमी के अपने मस’अले हैं बहुत॥

अजीब बात है रहते हैं एक ही घर में,

दिलों के बीच मगर उनके फासले हैं बहुत॥

ज़रा संभल के झुकें कह दो शोख़ कलियों से,

ये बाग़बान गुलिस्ताँ के मनचले हैं बहुत॥

समय का रेत जो मुट्ठी से आज फिसला तो,

अकेले बैठ के फिर हाथ हम मले हैं बहुत॥

बस एक जीत से अपने को बादशा न समझ,

अभी तो सामने मुश्किल मुक़ाबले हैं बहुत॥

मिलेंगीं रोटियाँ कपड़े मकां सभी को यहाँ,

चुनावी दावे हैं, दावे ये खोखले हैं बहुत॥

अगर कटेगा तो उजड़ेंगे आशियाने कई,

दरख़्त बूढ़ा है पर उसपे घोंसले हैं बहुत॥

सियाह रात ये नफ़रत की क्या करेगी मेरा,

चराग दिल में मुहब्बत के जब जले हैं बहुत॥

फ़रेब- झूठ का “सूरज” तुम्हें मुबारक हो,

मुझे तो जुगनु सदाक़त के ही भले हैं बहुत॥

                       

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

* ज़लज़ला =भूकंप, आबले=छाले ,दरख़्त =पेड़ 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 24, 2013 at 4:03am

अशोक भाई , प्राची जी और विजय साहिब आप सभी ने ग़ज़ल को सराहा और उत्साह वर्धक प्रतिकृया दी इसके लिए आप सभी  को बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by vijay nikore on April 23, 2013 at 10:25pm

//

अजीब बात है रहते हैं एक ही घर में,

दिलों के बीच मगर उनके फासले हैं बहुत॥// 

सारे ही शेर अच्छे हैं।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 10:10pm

बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी 

यह शेर बहुत पसंद आया 

अगर कटेगा तो उजड़ेंगे आशियाने कई,

दरख़्त बूढ़ा है पर उसपे घोंसले हैं बहुत॥

हार्दिक दाद पेश है 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 2:06pm

अगर कटेगा तो उजड़ेंगे आशियाने कई,

दरख़्त बूढ़ा है पर उसपे घोंसले हैं बहुत॥........वाह!

डाक्टर साहब क्या खूब गजल कही है सभी अशआर दिल को छू रहे हैं. बहुत गजब. बहुत बहुत दाद कुबूल फरमाएं साहब.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 22, 2013 at 12:38pm

सौरभ जी, मनोज जी, केवल जी, श्याम नारायण जी अभिनव अरुण जी और कुंती जी आप सभी का टहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। हौसला आफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 22, 2013 at 9:01am

ज्यादा ज़द्दोज़हद नहीं, सीधी बात कहना डॉ, सूरज साहब की विशेषता है. इस बार की ग़ज़ल में यही बात एक बार फिर से अण्डरस्कोर हुई है. आपके कई शेर ज़िन्दग़ी की पटरी से उठाये गये हैं, सो उनमें मिट्टी की खुश्बू है जिसकी गंध आज का दौर या तो भूल रहा है या उससे अपनी नज़रें-नाक सब फेर रहा है.

इन अश’आर की तासीर पूरी गज़ल में अलग सी लगी. ढेर सारी दाद कुबूल फ़रमाइये -

बस एक जीत से अपने को बादशा न समझ,
अभी तो सामने मुश्किल मुक़ाबले हैं बहुत॥

अगर कटेगा तो उजड़ेंगे आशियाने कई,
दरख़्त बूढ़ा है पर उसपे घोंसले हैं बहुत॥

Comment by manoj shukla on April 21, 2013 at 6:35am
बहुत सुंदर ....बधाई स्वीकार करें सूरया जी
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 20, 2013 at 5:47pm

आ0 डॉ॰ सूर्या बाली जी, दिल को छूती खूबसूरत गजल। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on April 20, 2013 at 3:20pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए .......................
Comment by Abhinav Arun on April 20, 2013 at 8:53am

ज़रा संभल के झुकें कह दो शोख़ कलियों से,

ये बाग़बान गुलिस्ताँ के मनचले हैं बहुत॥

मिलेंगीं रोटियाँ कपड़े मकां सभी को यहाँ,

चुनावी दावे हैं, दावे ये खोखले हैं बहुत॥

इस दौर के जिंदाबाद शायर डॉ बाली के इस सशक्त कलाम का हर शेर हर मिसरा एक स्लोगन सा सशक्त है क्या कहने बार बार पढ़ा और मन मजबूत होता गया !! क्या कहने इस तेवर के यही वक्त की दरकार है और कलम यहीं तलवार से ताकतवर सिद्ध होती है बार बार नमन है डॉ बाली जी , आपको हार्दिक साधुवाद ।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
29 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service