For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी!

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी
पूंछ ए खुदा,क्या चाहता हूँ मै लिखना
तेरे हाँथ थक गए होंगे मेरी कहानी लिखते लिखते

तो थमा दे मुझे मेरे जीवन की पुस्तक क्यूंकि
किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी

कुछ शब्द है मेरे जेहन में,
कुछ चित्र है मेरे मन में,
कुछ रस्ते है इस वन में,
कई इरादे है अब मन में,
उन सबको मिलाकर लिखूंगा एक कहानी
जो होगी मेरी ही जुबानी,
जीयुंगा अब उसे ही मै,

अब बस यही एक तमन्ना रह गयी है,
कुछ बाते हैं मेरे टूटे से दिल में,
जो मलबे में कहीं दबी रह गयी हैं,
उन्ही बातो को मैं लिखना चाहता हूँ
ए खुदा तुझे तो सब पता ही है,
अब और क्या बताऊँ
कि मै क्या चाहता हूँ,
बस इतनी सी बात हैं,
इज़ाज़त दे मुझे क्यूंकि,
किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी
-बिरेश कुमार

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amrita Choudhary on May 29, 2010 at 8:29pm
nice poem....

keep going....
Comment by विवेक मिश्र on May 10, 2010 at 11:01am
good one..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 10, 2010 at 8:05am
// तेरे हाँथ थक गए होंगे मेरी कहानी लिखते लिखते
तो थमा दे मुझे मेरे जीवन की पुस्तक क्यूंकि
किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी //

बहुत बुलंद ख्याल हैं बिरेश जी, अपनी लेखनी से इस जवाँ-मर्दी को कभी अलग ना होने देना - बहुत आगे जायोगे !
Comment by Biresh kumar on May 9, 2010 at 10:12pm
thanks friends!
mai apni kosis jaari rakhunga!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 9, 2010 at 9:21pm
अब बस यही एक तमन्ना रह गयी है,
कुछ बाते हैं मेरे टूटे से दिल में,
जो मलबे में कहीं दबी रह गयी हैं,
उन्ही बातो को मैं लिखना चाहता हूँ,
Jaroor likhiyey Biresh jee, ab likhaney key liyey Open Books Online bhi aa gaya hai aapkey paas, bahut badhiya likhey hai, aap to apaney pahaley blog mey hi garda udaa diyey, bahut badhiya, achha likh rahey hai, lagey rahiyey, Dhanyabad,
Comment by Admin on May 9, 2010 at 9:06pm
विरेश जी प्रणाम और स्वागत है आपकी पहले पोस्ट का ऒपन बुक्स आनलाइन पर, आज मै बेझिझक कहना चाहता हू कि मेरा मन क्या कहना चाह रहा है, मेरा मन कहता है कि मै अपनी पीठ स्वयं थपथपाऊ, और पश्वताप होता है कि मै इस साइट को पहले क्यू नही लाया, जब इतनी सुन्दर सुन्दर कविता,गज़ल पोस्ट होते देखता हू तो बिल्कुल मेरा मन यही कहता है, बहुत ही अच्छी रचना है बिरेश जी, काफी कुछ आपने अपने कविता मे कह दिया है, बहुत बहुत धन्यबाद है आपको इस पोस्ट के लिए, आगे भी आपकी रचनाऒ का इन्तजार रहेगा ।
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 9, 2010 at 8:24pm
biresh jee sabse pehle main aapke pehle blog ka swagat karta hoon OPEN BOOKS ONLINE me.
bahut acchi rachna hai biresh jee......
कुछ शब्द है मेरे जेहन में,
कुछ चित्र है मेरे मन में,
कुछ रस्ते है इस वन में,
कई इरादे है अब मन में,
उन सबको मिलाकर लिखूंगा एक कहानी
bahut badhiya likhte hain aap....aasha hai aage bhi aapki rachna padhne ko milti rahegi........
keep it up,,,,,,,,,...........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service