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"प्रेम के नाम दो शब्द "

घर की रौनक ,
चौधवीं का चाँद हो !
मेरी दुआ .
मेरी फ़रियाद हो  !


तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,
तुम्ही मेरी गीत हो !
तुम्ही मेरी हार .
तुम्ही मेरी जीत हो !


मेरी तमन्ना हो.
तुम्ही मेरी प्रीत हो!
जो मुझे सुकून दे .
तुम वही संगीत हो !


तुम्ही मेरी याद .
तुम्ही मेरी नीद हो !
मेरे जीने की आखरी .
तुम्ही उम्मीद हो !

राम शिरोमणि पाठक'दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2013 at 12:09pm

आपके आग्रहानुसार उक्त रचना का मात्रावलोकन कर टिप्पणी कर रही हूँ..

प्रयासरत रहिये राम शिरोमणि जी, मात्रा गणना सीखते जायेंगे. इसमें जैसी ११-१३,११-१३ आपने गणना लेने की कोशिश की है, वो कहीं कहीं कम-ज्यादा हो रही है.

चाँद के साथ फरियाद का तुक ठीक नहीं लग रहा..

नींद को नीद लिखा जाना भी सही नहीं हैं 

आप सतत पाठन भी करते रहें रचनाकर्म अपनेआप ही दिशा पाता जागेगा.

शुभेच्छाएं 

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