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काले किले का वो काला कलाल

यह रचना हास्य के लिए रची गयी है, कृपया अपना दिमाग साइड में रख दें , और अपने बचपन की शरारतों भरी यादों में खो जाएँ :

 

काले किले का वो काला कलाल
भोलू के भाले में अटका वो बाल |
मामा के मोहल्ले का माल-पुआ
गुल्लू की गाली का गुलाब जामुन
पुणे के पानी को पीने को जाना
पान चबाकर वो पाना ले आना
गन को दिखाकर वो गाना तो गाना
गुनगुना के वो धुन गुनगुनाना
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला
लाला की लाल लुना लहराना
लाल किले में लीला को ले जाना
नाले के नल में नीला नहलाना
गीले में गाली से गिले मिटाना
गीली सी गोली को गल से गलाना
चाल चलकर चाल चलाना
चूल्हा जलाकर चूहा छकाना
बोर हो कर बोर खाना
बोरी बनकर बहार जाना
बहना से बहाना बनाना
banana खाके बात बनाना
जल को जला के जलजला लाना
बल को बढ़ा के बाल घुमाना
खोल के खिलौने के खाने को
कान खुजा कर खाना खाना |
तेल को तल के ताल बनाना
ताले के तले को ढोल बनाना |
मिठ्ठू को मट्ठे और मठरी खिलाना
मटके में मिटटी मटक कर मथना |
कूड़े में काड़ी , सड़क पर गाडी
मम्मी की साड़ी, भैया की लाड़ी
किताब क्यूँ फाड़ी, चद्दर क्यूँ नहीं झाड़ी |
घडी क्यों है अड़ी, मार क्यों है पड़ी
मौसंबी क्यों है सड़ी, मुसीबत हुई आ खड़ी |

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 25, 2012 at 4:14pm

हा हा हा हा ...बहुत मजेदार रचना है. इतना कन्फ्यूज्ड बचपन.

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on September 25, 2012 at 12:24pm

हा हा हा हा हा ....... लगता है अप लोगों को मज़ा तो ज़रूर आया 

Comment by seema agrawal on September 24, 2012 at 3:34pm

ये हुयी न बात सौरभ जी अब  दुगना मुरब्बा बनेगा  ........

इस पोस्ट से विदा लेती हूँ नहीं तो ये तिगुना हो जायेगा _/\_  :-))))))))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 3:18pm

जी, समझ गया था. छेका व वृत्यानुप्रास का विशद उपयोग है.

Comment by seema agrawal on September 24, 2012 at 2:43pm

न न सौरभ जी गंभीरता से शिल्प देखिये ज़बरदस्त अनुप्रास है इस पंक्ति में 

ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला 
लाला की लाल लुना लहराना


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 2:40pm

लऽ.. इहेऽऽ..  सीमाजी लइकबुद्धि देखवली..   कुल्हि अक्षर गिने पर लग गयीं हैं..   :-))))))))))

जय होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 2:38pm

यानि आप अपनावाला बहिराये हैं ? वही कहे हम जे एतना पेंच काहें है..  

अब अचार बनाना कैंसिल..  इसका मुरब्बा बनेगा

हा हा हा हा..

Comment by seema agrawal on September 24, 2012 at 2:34pm

गणेश जी ऐसा नहीं की इसमे बिलकुल भी दिमाग नहीं लगाना है, ज़रा गिनिए तो कितने 'ल' हैं इसमे 

ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला 
लाला की लाल लुना लहराना 
लाल किले में लीला को ले जाना 
नाले के नल में नीला नहलाना 
गीले में गाली से गिले मिटाना 
गीली सी गोली को गल से गलाना 
चाल चलकर चाल चलाना 
चूल्हा जलाकर चूहा छका

 कुछ तो बात है रोहित भाई में ...............


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 24, 2012 at 2:30pm

सौरभ भईया रोहित भाई ने शुरू में ही लिख दिया था कि "कृपया अपना दिमाग साइड में रख दें " इसलिए मैं दिमाग को साइड में रख दिया था :-)))))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 1:15pm

गणेशभाई, अच्छा किया आपने कि आप ’नारियल’ फोड़ के उसका गुद्दा निकाल लाये. रोहित भाई से कहिये वे इसका अब अचार डालें.

हा हा हा...................

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