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धीरे धीरे बोंलो जी,
कानो में रस घोलो जी |
 
चबा चबा कर खाओ जी, 
खाओ और पचाओं जी :|
 
भोगी से योगी बनना सीखो, 
रोगी कभी न बनना जी | 
 
एक दूजे को जानो जी,
एक दूजे को राह दिखाओ जी 
 
रस्ते रस्ते चलना जी, 
देर लगे, लगने दो जी |
 
भाइयों के बीच ही बैठो जी 
बैर भलेही होंवे जी |
 
बच्चों को सिखलाओ जी, 
इन्हें नहीं धमकाओ जी |
 
कहने वाले कहते जी, 
अपने मन की मानो जी |
 
बैर/मतभेद किसी से हो जाए,
पर गाँठ कभी न बांधो जी |
 
सीखो और सिखलाओ जी, 
दुनिया को कुछ दे जाओ जी |
 
काव्य रस अपनाओ जी 
तुकबंदी को त्यागो जी |
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

 

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 12, 2012 at 1:29pm

आपकी टिपण्णी से रचना की सार्थकता सिद्ध हो गयी,

हार्दिक आभार आपका आदरणीय उमाशंकर मिश्राजी  
Comment by UMASHANKER MISHRA on September 6, 2012 at 11:06pm

आदरणीय लक्षमन प्रसाद  लड़ीवाला जी आपकी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई

उपयोगी और शिक्षा प्रद है

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 6, 2012 at 11:15am

रचना के भाव पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद बही योगी सारस्वत जी

Comment by Yogi Saraswat on September 6, 2012 at 10:07am
एक दूजे को जानो जी,
एक दूजे को राह दिखाओ जी
बहुत खूब , प्रेम का भाव लिए हुए मधुर कविता , लाक्स्मन प्रसाद जी !
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 8:06pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय रेखा जोशीजी 

Comment by Rekha Joshi on September 5, 2012 at 8:00pm

खूबसूरत रचना आदरणीय लक्ष्मण जी ,बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 6:24pm

रचना सर्थक लगी, इसके लिए हार्दिक आभार आपका श्री कुमार गौरव अजितेंदु जी,

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 5, 2012 at 12:06pm
सब शिक्षाप्रद बातें कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण सर। बहुत-बहुत बधाई।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 9:41am

धन्यवाद राजेश कुमारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2012 at 5:33pm

सच में काव्य रस सुनने में मधुर लगता है ---बहुत खूब 

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