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पडौसी खावे मलाई, हम ताकत ही रहे,
शरनागाह बना देश, हम देखते ही रहे |

नीतियाँ उदारवादी, हमको ही खा रही,
स्वार्थ की राजनीति, सबको जला रही |

स्पष्ट निति के अभाव में,अभाव में जी रहे,
सहिष्णुता लोकतंत्र में, तपत हम सोना रहे |

समय हमें सिखलाएगा, काँटों पर चलना,
शहीद की शहादत को, अक्षुण बनाए रखना |

शीतल कैलाश हिम पर, है शिव शंकर बैठे,
पवित्र गंगा भी धारित, है जटा में समेटे |

त्रिनेत्र से भष्म कर दे, इसका सबको ज्ञान

अनल अनिल को बुझादे,इसका सबको भान |

जनताके मतदान से,राष्ट्र भक्त हो गए,

खादीधारी घर बना, जन सेवक हो गए

माल लूट विदेश धरा,खुद खाली हाथ गए,
कफ़न में जेब नहीं थी, हाथ मलते रह गए |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 11:07am

 हार्दिक धन्यवाद भाई  श्री योगी सरस्वत जी 

Comment by Yogi Saraswat on September 13, 2012 at 10:43am

त्रिनेत्र से भष्म कर दे, इसका सबको ज्ञान
अनल अनिल को बुझादे,इसका सबको भान |

बहुत खूब श्री लक्ष्मण प्रसाद जी !

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