पडौसी खावे मलाई, हम ताकत ही रहे,
शरनागाह बना देश, हम देखते ही रहे |
नीतियाँ उदारवादी, हमको ही खा रही,
स्वार्थ की राजनीति, सबको जला रही |
स्पष्ट निति के अभाव में,अभाव में जी रहे,
सहिष्णुता लोकतंत्र में, तपत हम सोना रहे |
समय हमें सिखलाएगा, काँटों पर चलना,
शहीद की शहादत को, अक्षुण बनाए रखना |
शीतल कैलाश हिम पर, है शिव शंकर बैठे,
पवित्र गंगा भी धारित, है जटा में समेटे |
त्रिनेत्र से भष्म कर दे, इसका सबको ज्ञान
अनल अनिल को बुझादे,इसका सबको भान |
जनताके मतदान से,राष्ट्र भक्त हो गए,
खादीधारी घर बना, जन सेवक हो गए
माल लूट विदेश धरा,खुद खाली हाथ गए,
कफ़न में जेब नहीं थी, हाथ मलते रह गए |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
हार्दिक धन्यवाद भाई श्री योगी सरस्वत जी
त्रिनेत्र से भष्म कर दे, इसका सबको ज्ञान
अनल अनिल को बुझादे,इसका सबको भान |
बहुत खूब श्री लक्ष्मण प्रसाद जी !
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