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देखा न तुझे
जाना भी नहीं
तेरा रूप है क्या
और रंग कैसा
पर माँ तू मुझमें रहती है.

मैं चलता हूँ
पर राह है तू
हैं शब्द तेरे और भाव तेरे
माँ फूलों सा सहलाती तू
और काँटों को तू चुनती है.

हैं हाँथ मेरे कविता तेरी
ये अलंकार ये छंद सभी
माँ तू ही सबकुछ गढ़ती है
मैं लिखता रहता हूँ बेशक
तू सबसे पहले पढ़ती है.

तू पालक है और पोषक भी
तू ही माँ सुबह का सूरज
और चाँद की शीतल छाँव भी तू
माँ मैं जब भी तितली बनकर
छूता हूँ तेरी पंखुड़ियां
'तू खुशबू बन खिल' कहती है .

माँ रोता मैं तू पलकों में
मेरी आकर छुप जाती है
जब खिल खिल कर मैं हँसता हूँ
तू अधरों में बस जाती है
तू पर्वत है और झरना भी
माँ मैं जब नौका बनता हूँ
तू दरिया बनकर बहती है
माँ तू मुझमे ही रहती है.
मेरे अंतर में बसती है.

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2010 at 7:57pm
इस दुनिया मे माँ से बड़ा आज तक कोई नहीं हुआ, माँ की ममता का कोई मोल नहीं है, बस एक बात --- माँ तुझे सलाम !
एक बेहतरीन अभिव्यक्ति ,

कृपया ध्यान दे...

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