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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ (Now Closed With 1190 Replies)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के शानदार चौबीस अंक सीखते सिखाते संपन्न हो चुके हैं, इन मुशायरों से हम सबने बहुत कुछ सीखा और जाना है, इसी क्रम में "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ मे आप सबका दिल से स्वागत है | इस बार का मिसरा हिंदुस्तान के उस अज़ीम शायर की ग़ज़ल से लिया गया है जिन्होंने ग़ज़ल विधा को हिंदी में लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुँचाया.  जी हां आपने ठीक समझा मैं बात कर रहा हूँ विजनौर उत्तर प्रदेश में १९३३ में जन्मे मशहूर शायर जनाब दुष्यंत कुमार का। इस बार का मिसरा -ए- तरह है :

 .

"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाएलुन

(रदीफ़ : है)
(क़ाफ़िया   : आन, बान, शान, तूफ़ान, मेहमान, आसान इत्यादि) 

.

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जुलाई 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है:
 


( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

वाह वाह वाह भाई अलबेला जी, बहुत खूब. यह ग़ज़ल भी बहुत सुन्दर कही है. बधाई स्वीकार करें.

//शब्द ब्रह्म, कवि है उपासक, शायरी भगवान है //
लेखनी यदि है पुरोहित तो हवन स्वाभिमान है //


"कवि है उपासक" को "कवि उपासक" कर के देखें 
"लेखनी यदि है" को "लेखनी गर है" कर के देखें, रवानी बढ़ेगी.  

अवश्य ठीक करूँगा योगराज जी......
धन्यवाद
इस सुझाव और  अनुमोदन के लिए आभारी हूँ

वाह वाह आदरणीय अलबेला सर जी
कमाल की ग़ज़ल कही साहब बस मजा आ गया
बहुत सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए साहब

मुझसे ज़्यादा खानदानी कौन है इस मुल्क में
मेरे पुरखों में कबीरा, सूर औ रसखान है

जिस गली में नफ़रतों का बोलबाला है प्रिये
उस गली में मैंने खोली प्यार की दुकान है

धन्यवाद, शुक्रिया,  आदरणीय संदीप कुमार पटेल जी
आपकी सराहना  सर आँखों पर
सादर

ये ग़ज़ल औ शेर जैसे मोतियों की खान है।

एक अलबेला है खत्री जो स्‍वयं दीवान है।

प्रेम से बोलो तिलकराज जी कपूर की जय !

मुझसे ज़्यादा खानदानी कौन है इस मुल्क में
मेरे पुरखों में कबीरा, सूर औ रसखान है... इस शेर में तो आनंद आ गया.....

आदरणीय अलबेला भाई जी एक और बढ़िया गजल के लिए सादर बधाई स्वीकारें...

वाह वाह अलबेला भाई  क्या खूबसूरत अशआर कहे हैं
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए लाखों दाद क़ुबूल कीजिये

जिस गली में नफ़रतों का बोलबाला है प्रिये
उस गली में मैंने खोली प्यार की दुकान है,,,,,,,,,,,,,,,बहुत उम्दा शेर !!

साभार !

शुक्रिया भाई साहेब,............दिल से  शुक्रिया मतलब दिल से.........

गुरुजनों के समक्ष मुशायरे में दूसरा प्रयास प्रस्तुत है अबोध बालक को प्रबोध अवश्य दीजिएगा। सादर -

सामने मंजिल खड़ी है राह में तूफान है।
मुश्किलों से पार पाना क्या कभी आसान है॥

 
मुश्किलों को तोड़ती हैं हौंसलें चट्टान सी।
हर कहर से जूझले सच्चा वही इंसान है॥

 
देश वो बेखौफ लूटे अब नहीं सहना हमें।
ठान लेना आमरण अब जंग का ऐलान है॥

 
मांग मत अधिकार अपना छीन लेना धर्म है।
क्योंकि राजा दुष्ट है औ धूर्त बेईमान है॥

 
कत्ल दंगा घूस लेना और भ्रष्टाचार भी।
यह ही हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है॥

 
आजमा कर देख लो सब कुछ यहीं रह जायगा।
साथ तो बस जायगा तू पुण्य जो कमान है॥

 
जा रहा है चार कंधे पर चढ़ा शमशान को।
जानते हो क्या उसे मेरे शहर का डॉन है॥

 

हर बशर जिसकी नजर में एक जैसा हो बना।
है वही खालिक मिरा सच्चा वही भगवान है॥

 
चंद शब्दों में बयानी कर गया जो मन में थी।
गजल की बारीकियों से विन्ध्येश्वरी अंजान है॥

भाई विंध्येश्वरीजी, आपका प्रयास बना रहे. आप सही रास्ते पर हैं.  अपने अश’आर में सोच को और पगाइये. मेरी एक सलाह यदि आप मानें तो आप अन्य शायर/ रचनाकारों की रचनाएँ तो पढ़ें ही, उन प्रविष्टियों पर हुई प्रतिक्रियाओं पर भी अवश्य ध्यान दें. बहुत सी बातें स्पष्ट होती जायेंगी. इससे छंदों और ग़ज़लों के प्रति आत्मीयता भी बढेगी. किसी विधा को जानना अच्छा है मगर उसे हृदयंगम कर समझना उससे भी अधिक आवश्यक है.  वर्ना खुशफ़हमी तारी हो जाती है.

शुभेच्छाएँ

sahi hai...

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