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हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर {नज्म/गीत}

==========नज्म/गीत ==========

हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन
इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन
घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन
सूरज चढ़ के  देर से ढलता है तुम बिन

तुम आये जब मुझसे मिलने न पता चला
कब निकल गया इतबार तुमसे मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

मुझसे मिलने जब सम्हल सम्हल के आती है
खुशबू सी तेरी डगर डगर उड़ जाती है
तुझे देख प्रेम से आँख मेरी भर आती है
दिल के गुलशन की कलि कलि खिल जाती है

बेताब तुम्हे बाहों में भरने , इस दिल की
बढ़ जाती है रफ़्तार , तुमसे मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

दिल भूला है खुद को भी रब को भी भूला
क्या रिश्ते क्या दुनियादारी सब कुछ भूला
क्या चैन सुकूँ क्या है बेचैनी भी भूला
दुनिया में सबको गम है ये सच भी भूला

पाने को तेरा प्यार, रस्म रिवाजों की
मैंने तोड़ी दीवार, तुमसे मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

तुम जानो दिल का हल मगर कुछ न कहते
दोनों ही कुछ न बोलें चुप चुप से रहते
मैं जानूं तुम भी जानो नैना क्या कहते
बस जाते ही तेरे जो निर्झर से बहते

डरता हूँ तेरी न से , पर अक्सर सोचूं
अब करना है इकरार, तुम से मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

तुम तोड़ के ये नाजुक धागा अब न जाना
मजबूरी का कडवा सा गाना न गाना
मैंने तुमको तो रब से भी ज्यादा माना
तुम छोड़ के मेरा साथ न मुझको समझाना

दिल की धड़कन को रोक लूं फिर भी दूजे से
मुझको न होगा प्यार, तुमसे मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर


संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:33am

आप सभी आदरणीय अग्रजों गुरुवरों और मित्रों का ह्रदय की गहराई से बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार
मेरा साहित्य का दुर्गम पथ आसान करने मुझे सलाह देने मेरा मार्गदर्शन कर उत्साह बढाने के लिए मैं आपका आभारी हूँ
अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये ताकि मैं आपको कविता के रसास्वादन में नित नव व्यंजन देता रहूँ

Comment by Rekha Joshi on July 23, 2012 at 5:59pm

संदीप जी ,

तुम तोड़ के ये नाजुक धागा अब न जाना 
मजबूरी का कडवा सा गाना न गाना 
मैंने तुमको तो रब से भी ज्यादा माना 
तुम छोड़ के मेरा साथ न मुझको समझाना ,अति सुंदर गीत ,बधाई 
Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:55pm

वाह वाह संदीप पटेल दीप जी
बहुत प्यारा गीत

बेताब तुम्हे बाहों में भरने , इस दिल की
बढ़ जाती है रफ़्तार , तुमसे मिलकर
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर

__खूब खूब अभिनन्दन !

__बधाई !

Comment by deepti sharma on July 22, 2012 at 8:00pm

बहुत खूब 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 22, 2012 at 3:23pm

गीत या नज़्म रचने का अच्छा प्रयास किया है भाई संदीप जी ! अभ्यास करते रहिये सफलता अवश्य मिलेगी ...गीत या नज्म में अधिकतम तीन अंतरे ही उपयुक्त रहते हैं साथ-साथ उचित बंदिश का होना अनिवार्य है ताकि गेयता प्रभावित न हो   ..फिर भी हमारी ओर से आपके प्रति बधाई संप्रेषित है ! सस्नेह ...

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