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कब तलक ?,
यु ही आशु बहाती रहोगी ,
पहले सुनी मांग ,
और अब ,
सुनी गोद होने का डर ,
पलक झपकाये बीना ,
देखती रहोगी ,
कब तलक ?,
उट्ठो ,
आवाज दो ,
रोको उसे ,
वह अपना बर्तमान से ,
और तुम्हारे भाभिस्य से ,
खिलवार कर रहा हैं ,
और तुम यु ही ,
देखती रहोगी ,
कब तलक ?,
जिन्हें पैसे की भूख हैं ,
वो पैसे के लिए ,
कितने घरो का ,
बुझाये दीये ,
अब भी समय हैं ,
आवाज उठाओ ,
जो बर्बाद कर रहे हैं ,
हमारे भाभिस्य को ,
उनको कुचल दो .
देखती रहोगी ,
कब तलक ?,
तुम आदि सक्ती के रूप हो ,
तुमने क्या ना किया ,
इतिहास गवाह हैं ,
क्या तुम इन चन्द ,
सराब बनाने वालो को ,
जर से मिटा नाही सकती,
अगर नाही मिटा सकती ,
तो यु ही बहाती रहो आसू ,
फिर कभी नाही पूछूँगा ,
कब तलक ?,

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:46pm
बहुत सुन्दर| नारी चेतना को जाग्रत करती हुई कविता |
ब्रह्माण्ड
Comment by Babita Gupta on March 22, 2010 at 3:47pm
Ravi Bhaiya beautiful poem,thanks
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on March 16, 2010 at 8:16am
bahut shaandar guru jee........
hardam ki tarah ek aur dhamakedaar rachna.......
raua zor naikhe fatafat kavita ya aur bhi kuch likhe me......

bahut badhiay guru jee lagal rahi....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 15, 2010 at 7:21pm
पहले सुनी मांग ,
और अब ,
सुनी गोद होने का डर ,
पलक झपकाये बीना ,
देखती रहोगी ,
कब तलक ?,
गुरू जी हमेशा की तरह यह भी आपकी बेहतरिन रचनाऒ मे से एक है, नारी जब तक ममता और करूणा से काम ले रही है तभी तक वो अबला है जिस दिन वो अपने पर आ गई न तो समाज के दुश्मनो को छुपने के लिए धरती कम पडने लगेगी, बहुत बहुत धन्यबाद इस रचना के लिए ।
Comment by Admin on March 15, 2010 at 7:00pm
अब भी समय हैं ,
आवाज उठाओ ,
जो बर्बाद कर रहे हैं ,
हमारे भाभिस्य को ,
उनको कुचल दो .
गुरू जी बहुत ही मार्मिक और सोचने पर मजबुर कर देने वाली कविता आपने लिखा है, किसी ने सही कहा है कि औरत तेरी यही कहानी ऑचल मे दूध आखो मे पानी, पर सवाल उठता है कि आखिर कब तक ?

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