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ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
जीवन है रेत सा तो   क्या घरोंदे तो बना लूं 
फैला समुन्दर दूर तलक दूर तलक आकाश 
छाया अँधेरा घना बहुत जाने कब हो प्रकाश
बीत न जाये ये सुन्दर लम्हे सपने तो सजा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
 

दौड़ती हुई तट पे इतनी दूर  निकल आयी 

भागती जिसके पीछे जीवन नहीं  है  परछायीं
जीवन  है क्या खेल तुझे इसके हाल सुना लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
सर्द गरम ठोस नरम का  तुझे न है अभी अहसास
रंग बिरंगे  मुखोटे ओढ़े कई जन आयेंगे तेरे पास 
क्या सही है क्या गलत का आ तुझे ज्ञान करा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 

लंबी है डगर जीवन की  कांटो भरे हैं रास्ते 

पग पग पे कहीं लगे न ठोकर चलना तुम आस्ते 

चुन लूंगा  मैं ये कांटे सारे तेरा जीवन संवार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं  

 

हँसता रहे बचपन तेरा लग जाए मेरी  दुआ 

मासूम सी कली है तू  गर्म थपेडों ने है  छुआ 

शीतल पवन का झोंका दे तुझे जी भर निहार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं   

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:25pm

आदरणीय भ्रमर जी, सादर 

मैं जानता था कि आपका कवि ह्रदय जरूर गुनगुनाएगा. आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:23pm

आदरणीय बाली जी, सादर 

आपका स्नेह मेरा सहारा है 

धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:22pm

आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर 

स्नेह हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:21pm

आदरणीय योगी जी, सादर 

स्नेह हेतु आभार.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:20pm

आदरणीय उमा शंकर जी, सादर 

आभार. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:19pm

आपका विशाल अनुभव झलकता है

आपका ह्रदय कोमल प्यार छलकता है 

प्रिय कुमार जी, सस्नेह 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:03am

सर्द गरम ठोस नरम का  तुझे न है अभी अहसास

रंग बिरंगे  मुखोटे ओढ़े कई जन आयेंगे तेरे पास 
क्या सही है क्या गलत का आ तुझे ज्ञान करा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 

लंबी है डगर जीवन की  कांटो भरे हैं रास्ते 

आदरणीय कुशवाहा जी ...बहुत सुन्दर ....मै भी गुनगुनाने लगा ...ओ नन्ही परी .....काश इनकी राहों में कांटे कभी न आयें फूल खिल जाएँ 

भ्रमर ५ 

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 19, 2012 at 5:50pm
प्रदीप जी सादर नमस्कार ! बहुत ही सुंदर और साहित्यिल ढंग से आपने जीवन के यथार्थ को इस कविता के माध्यम से व्यक्त कर दिया है। ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी: जीवन है रेत सा तो   क्या घरोंदे तो बना लूं ,फैला समुन्दर दूर तलक दूर तलक आकाश 
छाया अँधेरा घना बहुत जाने कब हो प्रकाश, बीत न जाये ये सुन्दर लम्हे सपने तो सजा लूं...............बहुत बहुत बधाई !!
Comment by Albela Khatri on June 19, 2012 at 9:31am

वाह वाह वाह वाह
क्या बात है  प्रदीप जी........
बहुत खूब !

पग पग पे कहीं लगे न ठोकर चलना तुम आस्ते 

चुन लूंगा  मैं ये कांटे सारे तेरा जीवन संवार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लू

___बधाई इस अनुपम कविता के लिए

Comment by Yogi Saraswat on June 18, 2012 at 12:20pm

हँसता रहे बचपन तेरा लग जाए मेरी  दुआ 

मासूम सी कली है तू  गर्म थपेडों ने है  छुआ 

शीतल पवन का झोंका दे तुझे जी भर निहार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं  
आदरणीय श्री प्रदीप कुशवाहा जी , सादर नमस्कार ! बहुत मासूमियत भरे सुन्दर शब्द !

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