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मुक्तिका -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
लिखा रहा वह, हम लिखते हैं.
अधिक देखते कम लिखते हैं..

तुमने जिसको पूजा, उसको-
गले लगा हमदम लिखते हैं..

जग लिखता है हँसी ठहाके.
जो हैं चुप वे गम लिखते हैं..

तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..

पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं..

स्वेद-बिंदु से श्रम-अर्चन कर
संकल्पी परचम लिखते हैं..

शुभ विवाह की रजत जयन्ती
मने- ज़ुल्फ़  का ख़म लिखते हैं..

संसद में लड़ते, सरहद पर
दुश्मन खातिर यम लिखते हैं.

स्नेह-'सलिल' में अवगाहन कर
साँसों की सरगम लिखते हैं..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://@#@%$#@#$%$#$%%omhtt#$$#@#%$#%indi.in

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 29, 2012 at 10:39am

सुन्दरतम है बनी मुक्तिका

ईश कृपा से हम लिखते हैं

स्वागत हे गुरुदेव आपका 

मनभावन हर दम लिखते हैं

सादर

Comment by sanjiv verma 'salil' on April 29, 2012 at 10:06am

आपकी गुणग्राहकताको नमन.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 12:33am

जग लिखता है हँसी ठहाके.
जो हैं चुप वे गम लिखते हैं..

तुम भूले सावन औ' कजरी 
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..

पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं

बहुत खूब रही मुक्तिका आप के ..सच में कितना मन भावन लिखते हैं ..भाव प्रधान ..सुन्दर प्रस्तुति  ..जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 


Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 9:43pm

सर उत्कृष्ट रचना पर बधाई स्वीकार करें

Comment by वीनस केसरी on April 6, 2012 at 12:50am

संजीव जी इस भाव प्रधान श्रेष्ठ मुक्तिका के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 5, 2012 at 8:14pm

तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..

स्वेद-बिंदु से श्रम-अर्चन कर
संकल्पी परचम लिखते हैं..

क्या सुन्दर सृजन है आदरणीय आचार्य जी! निःशब्द हूँ प्रशंसा क्या कर पाऊंगा| हार्दिक बधाई!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 5, 2012 at 10:51am

पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं.. 

BAHUT SUNDAR ABHUVYAKTI AADARNIYA SALIL SAHAB, SADR BADHAI.

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:13am

संसद में लड़ते, सरहद पर
दुश्मन खातिर यम लिखते हैं.

स्नेह-'सलिल' में अवगाहन कर
साँसों की सरगम लिखते हैं..

बहुत श्रेष्ट व्यंजना आपकी,

सचमुच ही बादम लिखते हैं|

आभार, सादर वंदे

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