For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आयेगा..

मसीहा मर गया कब का लटक के सूली पे ,
कि छूटी जान इस जहाँ के चालबाजों से,
कोई पागल नहीं है वो कि फिर से आयेगा  ,
कम अज़ कम कब्र में तो चैन से सोने दो उसे ...
.
मौत के बाद उस कि क़द्र की तो एहसान क्या,
जिया  जब तक तबाह कर डाला तुम ने उसे.
उसी का हश्र देख मुहम्मद ने कहा "मैं आख़िर  हूँ  ",
न कूदे गा कोई वली अब तुम्हारे पचड़े  में,
अपना बवाल  अपने सर पे रखो कमबख्तो,
कि फिर से प्यासा मरने कौन आये तुम्हारी दुनिया में...
.
कहा तो कृष्ण ने भी था कि "मैं आऊँ गा..",
धर्म कि हानि होगी तब  तुम्हे  बचाऊँ गा,
बहुत उस्ताद थे जानते थे कहाँ  धर्म ही है,
और जो है ही नहीं उस की  हानि क्या होगी...
.
अधर्मी, बेधर्मी, विधर्मी, कुधर्मी हैं हम सब,
कहाँ से लायें धर्म और कहाँ से हानि करें, 
हाँ एक खाने  का धर्म ही तो रह गया है अब,
यही धरम निभाने में जुटे  पड़े हैं सब...
.
इस का उस का पड़ोसी का, चार घर आगे  का,
सब का खा  लो यही एक धर्म है निभा डालो,
जब इस में हानि करो गे तो कृष्ण आयें गे,
अपने सगों का कैसे खाते हैं , सिखाएं गे...
.
न छोड़ो सोच कर कि  वो तुम्हारा भाई है,
बाप है ,दादा है, या उन सबों का भाई है,
उन की  आत्मा का न सोचो चोला कोई बदल लेगी,
तुम अपना पेट भरो, गले तक भरो, धर्म करो...
.
जब तक इस चोले में हो ,यहाँ खाओ,
फिर जब दूसरे में घुसना तो उस के मुंह  से खाना,
खाते खाते उलट देना, उलट के फिर खाना,
पकडे जाने तो छूट जाने के बाद फिर खाना...
.
सीता की बेटियां बेफिक्र हैं राम और रावण से,
इस का बेटा है "लव" तो "कुश " क्या पता उस का हो,
कोई फायदा मिले  तो एक विभीषण का भी हो,
जाओ तुम यूँ ही टहल आओ, एक तुम्हारा भी हो...
.
करो गे क्या यही दुनिया है, इसी में जीना है,
देख पाओ तो देखो वर्ना आंख अपनी फोड़ डालो,
जीना चाहो तो जियो वर्ना कहीं से कूद  मरो,
अपने चुल्लू  का पानी बचा लो बेशर्मो के लिए.....

.

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 8, 2012 at 3:40pm

मसीहा रोज आता है,मसीहा रोज आएगा|

चमन को बेचने वाले भी इसको जानते हैं|

मगर आँखों में पर्दा हैं छ्टेगी अज्ल के ही दिन,

फिर जो होना है सो होगा,सभी यह मानते हैं||...यह मेरा मंतव्य है..आदरणीय सरिता जी जोरदार रचना पर बधाई कबूल करें

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 7, 2012 at 3:48pm

बहुत सुन्दर रचना के साथ इस मंच पर आगमन. बधाई! सरिता जी.

मौत के बाद उस कि क़द्र की तो एहसान क्या,
जिया  जब तक तबाह कर डाला तुम ने उसे.
उसी का हश्र देख मुहम्मद ने कहा "मैं आख़िर  हूँ  ",
न कूदे गा कोई वली अब तुम्हारे पचड़े  में,
अपना बवाल अपने सर पे रखो कमबख्तो,
कि फिर से प्यासा मरने कौन आये तुम्हारी दुनिया में...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2012 at 10:56pm

वाह वाह, क्या शैली है, झकझोर कर रख दिया, बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति, मानव के दानव बनने की प्रक्रिया को रेखांकित करती इस रचना पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे आदरणीया सरिता सिन्हा जी |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 10:21pm

 सशक्त रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 6, 2012 at 9:56pm
करो गे क्या यही दुनिया है, इसी में जीना है,
देख पाओ तो देखो वर्ना आंख अपनी फोड़ डालो,
जीना चाहो तो जियो वर्ना कहीं से कूद  मरो,
अपने चुल्लू  का पानी बचा लो बेशर्मो के लिए.....

सरिता बहन जी ! आग उगलती हुई इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 9:18pm

स्नेही ईश पुत्री, सादर. शानदार विचारों से युक्त वर्तमान स्थिति को दर्शाती रचना , बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 7:28pm
जीना चाहो तो जियो वर्ना कहीं से कूद  मरो,

अपने चुल्लू  का पानी बचा लो बेशर्मो के लिए

सरिता जी,

धमाकेदार कविता के साथ मंच पर आपका प्रथमागमन शानदार रहा| बहुत ख़ूब! मेरी ओर से बधाईयां...

Comment by Abhinav Arun on April 6, 2012 at 3:39pm

एक   सन्देश परक सार्थक सशक्त रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता जी !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 6, 2012 at 3:39pm

//जाओ तुम यूँ ही टहल आओ, एक तुम्हारा भी हो...

करो गे क्या यही दुनिया है, इसी में जीना है,

देख पाओ तो देखो वर्ना आंख अपनी फोड़ डालो,
जीना चाहो तो जियो वर्ना कहीं से कूद  मरो,
अपने चुल्लू  का पानी बचा लो बेशर्मो के लिए.....//

सरिता सिन्हा जी ! आग उगलती हुई इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service