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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २१(Now closed with 557 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

मौक़ा है कि इस माह के मिसरा-ए-तरह की घोषणा कर दी जाय | बड़े हर्ष के साथ कहना चाहूँगा कि इस माह का तरही मिसरा हिंद्स्तान के जाने माने युवा शायर जनाब जिया ज़मीर साहब की एक ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है | विरासत में मिली शायरी आपने 2001 से शुरू की, वर्ष 2010 में ग़ज़लों का पहला संकलन "ख़्वाब-ख़्वाब लम्हे" के नाम से उर्दू में प्रकाशित हुआ। आपकी रचनाएँ देश-विदेश की विभिन्न उर्दू-हिन्दी की पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। टेलीविज़न से भी आपकी रचनाएँ प्रसारित होती रहती हैं।

"अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों के चलन में आए "

बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज असलम मुदायफ

अ(१)/ना(२)/कि(१)/चा(२)/दर(२) उ(१)/ता(२)/र(१)/फें(२)/के(२) मु(१)/हब(२)/ब(१)/तों(२) के(२)/च(१)/लन(२)/में(१)/आ(२)/ये(२)

मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन

१२१२२                  १२१२२                 १२१२२                १२१२२

रदीफ: में आये

काफिया: अन ( कफ़न, बाकपन, दहन, चमन, अंजुमन आदि )


इसी बह्र पर एक विडियो नीचे दे रहा हूँ जिससे बह्र को समझने में आसानी हो सकेगी | वैसे अमीर खुसरो की मशहूर उर्दू/अवधी गज़ल "जिहाले मिस्कीं " भी इसी बह्र पर है|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३१ मार्च दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन)

ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

 अरुण भाई, सर मत बनाइये हमको, नहीं तो शर्म से इस मंच पर मुह भि नही दिखा पाएंगे :)) और ग़ज़ल तो सच में आपने बहुत सुन्दर लिखी है. एक बार और बधाई.

राकेश भाई जी ! आप मुझसे ज्यादा जानकार  है ! इस क्षेत्र में मैं अभी नया हूँ  हैं ! सर कहलाना तो आपको ही शोभा देता है !

वैसे इस बार "सर " नही कहा ! ठीक ? :) :)

हाहा सही है, जो गुरु भाई दिल से कह दे वो कुबूल :))

इस बाबह्र ग़ज़ल के लिये बधाइयाँ कुबूल करें भाई अरुण जी.

पुराने पतझड़ की हर...   क्या भाव और क्या अंदाज़ .. वाह !!

आखिरी शेर के लिये विशेष बधाई.

बहुत उम्दा .. वाह

सराहना हेतु धन्यवाद सर !

वैसे आपसे विस्तृत विवेचना की उम्मीद थी जो  सराहना के साथ साथ सीख भी होती !

भाई अरुणजी, अपनी समझ भर जो कुछ जानता हूँ अवश्य बिना लागलपेट शेयर करता हूँ. अच्छे अश’आर लगें तो मुग्ध हो मौन तारी हो जाता है.

हार्दिक शुभकामनाएँ.

आदरणीय सौरभ  सर ! तब तो आपका मौन मेरे लिए एक उपलब्धि है ! और मेरी गज़ल का अभूतपूर्व सम्मान भी ! सादर धन्यवाद !

अरुण जी वास्तव में श्री आपकी इस रचना में नजर आ रही है.

आदरणीय सलिल सर ! आपकी प्रशंसा से स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा हूँ ! सादर धन्यवाद !

नज़र  में आँसू भले सजे हो नज़र हँसी ही सुखन में आए

मैं खून अपना बहा दूँ बेशक जो रंग कुछ अंजुमन में आए..kya bat hai

 .

हरेक  पत्थर से  इल्तिजा है कि बन के आँसू रहे नज़र में

अना की  चादर  उतार फेके  मुहब्बतों  के चलन में  आए...wah Arun ji.

.

ये बात जब से हुई नुमाया अधूरी  चाहत है उसके दिल में

लो  टूट जाने  नज़र पे उसके  कई सितारे  गगन में आए......dil me utar gaya 

  .

ज़माने को मैं हंसाता  आया न रो के रुखसत मुझे करो तुम

मिरे जनाजे को हँस के देखो ज़रा सी रंगत कफ़न में आए....umda.

 .

पुराने पतझड़ की हर निशानी मिटा के रख दो सुबह से पहले

नज़र भी फूलों से ख्वाब देखे बहार फिर से चमन में आए...kya bat kahi Arun ji..bahut umda.

.

वो हादसों के कठिन सफर में सही सलामत रहे बड़े  दिन

दुआएँ माँ की रही मुहाफिज़ तभी तो वापस वतन में आए...sachmuch......ma!kasam...ek mukammal gazal Arun bhai.

अविनास सर ! दिल में उतर गया आपका अंदाज ! हर शे'र की दाद अलग से ! धन्यवाद आदरणीय !

हरेक  पत्थर से  इल्तिजा है कि बन के आँसू रहे नज़र में

अना की  चादर  उतार फेके  मुहब्बतों  के चलन में  आए

.

ये बात जब से हुई नुमाया अधूरी  चाहत है उसके दिल में

लो  टूट जाने  नज़र पे उसके  कई सितारे  गगन में आए

भाई अरुण जी ! बहुत खूबसूरत गज़ल कही है भाई ! दिल खुश कर दिया है आपने ! बहुत बहुत बधाई मित्र !

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