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ग़ज़ल - (तरही मुशायरा -15 में सम्मिलित)

 

ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये
जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||

एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा
कह उसे, उड़ने में भी आचार होना चाहिये ||2||

साहिबी अंदाज़ उसपे सब्ज़चश्मी या खुदा
साहिबों के हाथ अब अख़बार होना चाहिये ||3||

जा गरीबों की गरीबी वोट में तब्दील कर
है सियासी ढंग पर साकार होना चाहिये ||4||

बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||

झुर्रियाँ कहने लगीं अब वक़्त उसका थक रहा
उम्र के इस मोड़ पे इतवार होना चाहिये ||6||

शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||7||

गो’ ये रातें सर्द हैं पर यार इनमें ताब है
मौसमों में है मज़ा, बस प्यार होना चाहिये ||8||


तुम हुये तो हो गये हम ज़िन्दग़ीवाली ग़ज़ल
अब लगा हर सुर सनम दमदार होना चाहिये ||9||

खैर खाँसी खूँ खुशी पर्दानशीं कब, इश्क़ भी !
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिये ||10||

आपके आजू नहीं तो आपके बाजू सही
देखिये ‘सौरभ’ सभी का यार होना चाहिये ||11||

*******************

--सौरभ


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Comment by MARKAND DAVE. on October 17, 2012 at 11:47am

शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||7||

 

Very Nice Resp.Sirji,

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 7:56pm

वाह वाह वाह. एक से बढ़ कर एक शेर. किसी भी शेर को उध्रित कर के दूसरे शेर का अपमान नही करना चाहता. अल्फ़ाज़, भाव, और अनुभव का अद्भुत समन्वय. कोटि कोटि बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 17, 2012 at 11:35pm

जो कुछ आप देख-पढ़ रही हैं, इसका श्रेय इस मंच को ही जाता है.

सधन्यवाद.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 3:49pm

//बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||//

बहुत जानदार शेर ! वैसे पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बहुत शानदार, जानदार व ईमानदार है! आदरणीय भाई सौरभ जी इस हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई  !

Comment by satish mapatpuri on October 14, 2011 at 12:23am

मेरी गैरहाजिरी पर गौर किया आपने, यह जानकर मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा है आदरणीय सौरव जी............... बहुत -बहुत आभार बंधुवर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 9:20am

धन्यवाद सतीशजी, आपको मेरा प्रयास भाया. सहयोग बना रहे.

आपकी कुछ दिनों की अनुपस्थिति बहुत दुखदायी रही.  आपको हम सभी ’मिस’ किये भाई..!!

Comment by satish mapatpuri on October 12, 2011 at 12:13am

झुर्रियाँ कहने लगीं अब वक़्त उसका थक रहा
उम्र के इस मोड़ पे इतवार होना चाहिये ||6||

शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||

ज़हेनसीब .................. शानदार है भाई सौरभ जी, दाद कबूल करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 11, 2011 at 8:28am

बहुत-बहुत शुक्रिया अभिनवजी. सहयोग बना रहे.  मुन्तखिब शे’र के लिये अलग़ से शुक्रगुज़ार हूँ.

और भाईजी, अभी-अभी तो ’ककहरा’ शुरु किया है, ’उस्ताद’ जैसे बुलडोजिंग शब्दों से न डराइये. सुझावों-सलाह के लिये, भाईजी, फिर कहाँ जाऊँगा !   :-))))))

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 11, 2011 at 8:22am

हार में मनके जड़े हैं, बानगी कुछ बेबसी 

पेश है जो बन सका, स्वीकार होना चाहिये

धन्यवाद, आराधनाजी.

Comment by Abhinav Arun on October 10, 2011 at 11:47am

आहा उस्तादाना शायरी की मजबूत मिसाल !!

कमाल की ग़ज़ल !! और इस भाषा शैली के क्या कहने मेरे ग़ालिब की याद हो आई !!

एक शेर चुना है मेरा मोस्ट फेवरिट -

बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||

हार्दिक बधाई !!

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