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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १९

परम स्नेही स्वजन,

देखते ही देखते हम ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के उन्नीसवें चरण में प्रवेश कर गए | प्रयोग के तौर पर प्रारम्भ हुआ यह सिलसिला आज कई नए फनकारों के उभरने का सबब बन गया है और भविष्य में भी आशा है कि प्रतिष्ठित रचनाकारों का मार्गदर्शन इसी प्रकार मिलता रहेगा | हर बार की तरह ही इस बार भी हम एक नया मिसरा लेकर हाज़िर हैं | इस बार का तरही मिसरा, महानतम शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है | इस बार की बह्र भी खास है और हो सकता है कि थोड़ा कठिन भी लगे पर यकीं मानिए जब एक बार आपके दिमाग में फिट हो जायेगी तो शेर तो खुद ब खुद निकल कर आने लगेंगे | तो चलिए आप और हम लग जाते हैं और अपने ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदी पर पहुंचाते हैं |

"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

चित्र में तकतीई करते समय जहाँ पर मात्राओं को गिराकर पढ़ा जा रहा है उसे लाल रंग से दर्शाया गया है|

रदीफ: में

काफिया: आब (हिसाब, नकाब, अजाब, किताब आदि)

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ जनवरी दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जनवरी दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

मुशायरे के समापन पर पिछली बार की तरह ही सभी बेबह्र और बाबह्र शेरों को अलग अलग रंगों से दर्शाते हुए ग़ज़लों को संग्रहित कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १९ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ जनवरी दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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बह्र को समझने के लिए एक विडियो भी नीचे लगाया जा रहा है जिसका उद्देश्य मात्र यह है कि यह धुन आपके दिमाग में फिट बैठ जाए |

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन)

ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

नमस्कार आदरणीय मित्रों,
क्षमा करें! व्यावसायिक कार्यों में व्यस्ततावश आज काफी देर से आ पाया हूँ ! बतौर जुर्माना यह गज़ल पेश कर रहा हूँ ! अभी भी एक निमंत्रण में जा रहा हूँ ! देर रात में लौट कर सभी की ग़ज़लों पर अपनी प्रतिक्रिया दूंगा ! सादर :

'गज़ल'
वो रोशनी सभी को मिले आफताब में,
अहले वतन का महके पसीना गुलाब में.

बाँटा हमें जरूर ये किससे करें गिला,
लाखों हुए शहीद यहाँ इन्कलाब में.

दिल मानता नहीं था मगर मैंने लिख दिया ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में.

किसको नहीं खबर है कहाँ मुल्क जा रहा,
लेकिन बजिद हैं लोग हिसाबो-किताब में.

‘अम्बर’ को प्यार की ये जमीं रास आ गयी,
दिन को है आफताब शब–ए-माहताब में.

  • अम्बरीष श्रीवास्तव

बाँटा हमें जरूर ये किससे करें गिला,

 लाखों हुए शहीद यहाँ इन्कलाब में.

आपके इस ख्याल को सलाम आदरणीय श्रीवास्तव साहेब

आदरणीय  मापतपुरी जी .....इसे पसंद करने व तारीफ करने के लिए तहे दिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया ....जय ओ बी ओ !

स्वागत मित्रवर

अहले वतन का महके पसीना गुलाब में.  .........    आमीन

लाखों हुए शहीद यहाँ इन्कलाब में.....................  सत्य वचन

गिरह के शे’र पर विशेष बधाई आदरणीय.   मग़र ’ ये दिल मांगे कुछ और...   और मोर...’    :-)))))

 

स्वागत है आदरणीय मित्रवर ! आपका हार्दिक आभार .......और ’ ये दिल मांगे कुछ और...   और मोर...’ के अनुसार आपके आदेश का अनुपालन हो गया है .....:-)))

जी,  ओबीओ का यह आयोजन कुछ और धनी हुआ है. 

सादर अदरणीय अम्बरीष भाई जी.. .

सादर :

बहुत खूब अम्बरीश भाई अच्छे शेर निकाले है, गिरह भी बढ़िया है, बधाई स्वीकारे भाई साहब |

आदरणीय भाई बागी जी ! अशआर व गिरह को सराहने के लिए बहुत-बहुत आभार मित्र ! जय ओ बी ओ !

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है अम्बरीश भाई ..दिली दाद क़ुबूल करें ..

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई नजील जी !

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"धन्यवाद आ. रचना जी "
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