For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा - बकाया !

लघुकथा -  बकाया !

डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती मरीजो की और बढे | सिस्टर अर्चना कुछ बेचैन दिखी उन्हें |

"क्या हुआ ? " पूछा उन्होंने | 

" सर वो चार दिन पहले भर्ती बच्चे की पल्स .. हार्ट रेट ..ब्लड  प्रेशर कुछ भी नहीं .."

 " हूँ ... " डाक्टर धीरज बेड की ओर बढे |

"इसके माँ बाप ? अटेंडेंट ??"

" सर वो गाँव से आये थे , बाहर होंगे उन्हें अभी नहीं बताया गया है "

डॉ धीरज ने वहीँ से बिल काउंटर से इंटरकाम पर पूछा " बेड नंबर १० के मरीज की पेमेंट पोजीशन ?"

"सर बीस हज़ार पांच सौ के करीब बकाया है आज देने को कहा है |"

"ओ के ! उन्हें जल्दी पैसे जमा करने को कहो |"

सिस्टर अर्चना ने पूछा " सर बॉडी  बाहर मर्चरी में  कर दें ? "

" नहीं | गार्जियन को कह दो जल्दी पैसे की व्यवस्था करें | उन्हें बताना बड़े डॉक्टर  दिन में देखेंगे | "

बाहर राधा और मोहन परेशान थे |

राधा ने थके घबराए लहजे में पूछा  " क्या हुआ पैसे की व्यवस्था हुई "

" हाँ पंद्रह हज़ार साहूकार ने दिए हैं अभी करीब दस हज़ार की और ज़रूरत होगी देखें डाक्टर साहब क्या कहते हैं | "

"देखिये बड़े डाक्टर आपके बच्चे को देखने आने वाले हैं आप आज ही सारे पैसे जमा कर दें | " काउंटर से मोहन को यही बताया गया |

" राधा लगता है खेत गिरवी रखने होंगे तब किसना का इलाज होगा मैं गाँव जाता हूँ तुम यहाँ ठहरो "

यह कह कर मोहन अपने आंसुओं को रोकता बस स्टेंड की ओर बढ़ गया | राधा देवी माता को मनौती मानने लगी | उधर डॉक्टर धीरज ने कथित बड़े डॉक्टर को फोन कर कहा -

"सर वो लड़का रात को ही ख़त्म हो गया | सर अब आपको आने की ज़रूरत नहीं | ऐज पर कांट्रेक्ट आपका फिफ्टी परसेंट आज ही पे कर देता हूँ | थैंक्स फॉर यौर को - आपरेशन सर ! "

दस  बज चुके थे अस्पताल में रोज़ की तरह चहल पहल बढ़ गयी थी |

उधर पास ही के गाँव में ज़मीन के कागज के साथ मोहन साहूकार की बैठकी में पहुँच चुका था |

 

                                                                                                                  --  अभिनव अरुण {19102011}

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 26, 2011 at 3:47pm
Thanks Vandana Ji & Happy Diwali
Comment by Abhinav Arun on October 24, 2011 at 2:08pm
  आदरणीय श्री ब्रजभूषण जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार | ओ बी ओ के इस मंच पर आप जैसे सुधिजनो के सानिध्य में सीखने गुनने का क्रम जारी है |
Comment by Brij bhushan choubey on October 24, 2011 at 12:36pm

समाज की एक सच्चाई से रूबरू कराती मारक लघु कथा हृदय को क्ष्रीण कर गई |

Comment by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 5:22pm

आदरणीय सौरभ जी मेरा आशय वो नहीं था | मैंने तो आभार स्वरुप कहा जैसे देर से आये मेहमान से कहते हैं " आप आ  गए यही सौभाग्य की बात है " कृपया इसे शिकायत के रूप में न लिया जाए वैसे भी मैं अनुज ठहरा छोटी छोटी गलतियों को नज़रंदाज़ आप कर ही सकते है ऐसा मेरा अधिकार है शरारत ही सही ||

और हाँ दीप पर्व की  अग्रिम शुभकामनाएं !! आइए हंसी ख़ुशी साहित्य दीप जलाएं ओ बी ओ मुख पृष्ठ की तरह !! :-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2011 at 5:02pm

// :-)) आपकी नज़रे इनायत हुई ये क्या कम है ..//

मतलब नहीं समझा. हमने आपकी रचनाओं को क्या कभी जानबूझ कर नज़रन्दाज़ किया है ?

Comment by Abhinav Arun on October 22, 2011 at 2:03pm
 :-)) आपकी नज़रे इनायत हुई ये क्या कम है ... दर असल एक समाचार से उद्वेलित होकर लिख डाला .. वरना सच है ऐसी घटनाएं अब आम हो गयी है और लघु या विराट कथाएं इस व्यवस्था की करवट बदल पाने में कहाँ कामयाब हो पाती  है ... पर प्रयास कलम का कर्तव्य है ! .... और जारी है !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 21, 2011 at 2:01pm

इस सशक्त लघुकथा को देर से देख पा रहा हूँ, अरुण अभिनवजी.

इस कथा ने वो सच उजागर किया है जिससे आम आदमी रोजाना जूझता है परन्तु कह नहीं पाता. कुछ तथाकथित ’भगवानों’ की कारगुजारियाँ इतने घिनौने ढंग से बाहर आने लगी हैं कि लोगों का गाहे बगाहे गुस्सा भी फूट पड़ने लगा है. अब किसे गलत कहा जाय --गुस्साए लोगों को जो इन राक्षसी प्रवृति के शिकार हैं या उनको जिनके कारण इतनी पवित्र सेवा संदेह के घेरे में आगयी है. 

कोई शहर नहीं बचा है जहाँ ऐसी घटनाएँ आम नहीं हुई हैं. अब तो कई चिकित्सक मनोवैज्ञानिक दबाव बना कर रोगियों के पारिवारिक सदस्यों से बात करते हैं ताकि रोगी चंगुल से छूट न पाये.

बधाई ऐसी रचना के लिये जिसने भयावह विकृति को सामने रखा है और पाठक की सोच को खुराक़ दी है.

Comment by Abhinav Arun on October 21, 2011 at 11:46am
लघु कथा पर आपकी टिप्पणी ने इसे और भी सार्थक और महत्वपूर्ण बना दिया आदरणीय श्री बागी जी | हाँ ये सच है कि हर किसी को एक ही तराजू में रखकर नहीं तुला जा सकता | कुछ लोग अच्छे और आदर्श भी हैं | यह कथा अभी हाल कि एक सत्य घटना पर आधारित है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 20, 2011 at 10:26pm

अरुण भाई कथित आज के भगवान् की कलई खोल कर रख दिया है आपने, आज किसे नहीं पता है कि कमीशन खाने के लिए चिकित्सक महँगी दवायें, बगैर जरुरत की जाँच कराने को कहा जाता है साथ ही मनचाहे लैब में भेजा जाता है |हलाकि आज भी कुछ चिकित्सक ऐसे है जो इस बिमारी से बचे है |

बहुत बहुत आभार अरुण जी इस लघु कथा हेतु |

Comment by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 8:00pm
thanks shashi ji for your valueable comment.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service