For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -७' ( Closed with 654 Replies )

नमस्कार आदरणीय मित्रों !

आप सभी का हार्दिक स्वागत है !  हमारे त्यौहार हम सभी में आपसी मेलजोल व भाई-चारा तो बढ़ाते ही हैं साथ ही साथ किसी न किसी सार्थक उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त हमें प्रेरित भी करते हैं ! केवल यही नहीं वरन् हम सभी अपने-अपने धर्म व मज़हब के दायरे में रहते हुए भी, एक-दूसरे के तीज-त्यौहारों में शरीक होकर आपसी सद्भाव में अभिवृद्धि करते हैं परिणामतः अपने सभी त्यौहारों का आनंद तत्काल ही चौगुना हो जाता है| यही उत्तम भाव तो अपनी गंगाजमुनी संस्कृति की विशेषता है, जिसे मद्देनज़र रखते हुए इस बार सर्वसहमति से  'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -७' हेतु  आदरणीय गणेश जी बागी द्वारा ऐसे चित्र का चयन किया है जिसमें स्पष्ट रूप से यही परिलक्षित हो रहा है कि..............

 

मेल-जोल, सहयोग ही, जब हो सहज स्वभाव. 

जले ज्योति से ज्योति तब, क्यों ना हो सद्भाव.. 

 

आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण !  और हाँ आप किसी भी विधा में इस चित्र का चित्रण करने के लिए स्वतंत्र हैं ......

 

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से १८ तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |


 (2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 


(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक- के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता  अंक-७, दिनांक  १६ अक्टूबर से १८ अक्तूबर की मध्य तात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी,, साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव



Views: 11675

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सुन्दर व सन्देशपरक ग़ज़ल ! बधाई राही जी |

आपको ग़ज़ल अच्‍छी लगी, आभारी हूँ।

(प्रतियोगिता से अलग)

दीप जले -- (छंद : मत्तगयंद सवैया)

पाँति
सजी मनभावन, पावन दीप जले, निशि राग भरी है
ज्योति
से ज्योति जली, मनमोहन रूप धरे, मधु भाव भरी है
रौनक
खूब हुई, चितमोहक भाव बने, घड़ियाँ शुभ आईं
दीप
जले, उर-दीप खिले, लड़ियाँ सँवरीं, सखियाँ जुड़ि आईं ||1||

कार्तिकमावस घोर सही, पर रात की मांग सजी-सँवरी है
’पन्थ’
नहीं मन भेद सके कुछ, प्रेम-उछाह बड़ी निखरी है
जीवन में नव ’पन्थ’ बनें, अब नूतन आय, पुरातन जाए
अंग
से अंग मिले मिले, उर-तार मिले, शुभता रस पाए ||2||

 

दीपन की अवली सु-भली, पुलकी-पुलकी सखियाँ मुसकावैं
खील
-बताश मिठाई मधुर सब, राग करैं, उपमा करि खावैं
झूम
रहीं सखियाँ, इनका मिलना जुलना अति नेह भरा है
सुन्दर
-सुन्दर दीप जले, इस दीपक-हार का मोल बड़ा है  ||3||

ओरि
सखी, तुम दीप गहो, शुभ ज्योति प्रकाश से चित्र बनावैं
दीपक
-पर्व शुभेशुभ पावन रात की गोद में मोद मनावैं
रात
-उजास तभी कहिये, जब भाव मिलै सब झूम के गावैं
जीवन
-पर्व  मने तबहींजब जीवन-बोध भी मिल पावैं  ||4||

*****************

--सौरभ

*****************

’मावस - अमावस

वाह वाह प्रभु! मनमोहन रूप और मधु भाव से सजे इन चारों मत्तगयन्द सवैयों नें तो इस चित्र को मानो सजीव ही कर दिया है सच कहा आपने! इस अमूल्य दीपक हार की कामना भी कुछ नये की ही है ! "अंग से अंग मिले मिले, उर-तार मिले, शुभता रस पाए" जैसी कामना तो किसी उदारमना की ही हो सकती है!

इन पंक्तियों के लिए विशेष तौर पर बधाई स्वीकार करें मित्रवर !
"रात-उजास तभी कहिये, जब भाव मिलै सब झूम के गावैं
जीवन
-पर्व  मने तबहींजब जीवन-बोध भी मिल पावैं "

सादर

चित्र के अनुरूप काव्य की रचना के क्रम में सवैयों पर हुआ प्रयास इन छंदों का कारण बना है आदरणीय. आपने प्रयास को मान दिया इससे बढ़ कर संतोष क्या हो सकता है. चित्र से अनुसार आवश्यक भावनाओं को पिरोने के साथ-साथ तकनीकि रूप से भी इन छंदों को सजग रखने का प्रयास आपकी दृष्टि में आया, इस हेतु आपका सादर आभार.

'सौरभ' सुंदर मत्तगयंद सवैयन की महिमा शुचि न्यारी,
तार-सितार बजैं उर के सब एक बनैं समता घर-द्वारी ,
धर्म अधर्म में भेद बड़ा निज धर्म यहाँ समुझैं मिलि चारी,
अंतस-ज्योति प्रकाशित हो जब ज्योति से ज्योति जलै बलिहारी.. 

पुनश्च आभार मित्रवर !

मनि गये सब ’अम्बर’ कौतुक, आशु रचें रचना अति न्यारी

मंच के भाग बड़े ही मनोहर, लेखन-मंडलि आ जुटि प्यारी

सीख-सिखावन की महिमा, प्रभु उर्ध्व चढ़ै, कइ बुद्धि-विचारी

आप से बूझ पढ़ें सब पिंगल, भाव रचें सुर, राग उभारी

.. 

वाह प्रभू भई वाह प्रभू हम मानि गये रचना अति प्यारी,
खूब जमे प्रभु खूब जमे यह छंद लगै  जिमि सूट सफारी,
संत हृदय प्रभु आप मिले हम धन्य हुए सब हैं बलिहारी,
आशु कवी प्रभु आप बने हम जोरि रहे गिनती दुइ चारी..

साथ मिला प्रभु आप हुए मनमीत कि क्या निज अंतर खोलूँ?

किस्मत की यह बात नहीं फिर और कहें किस तोलन तौलूँ !

सादर आदर की बतियाँ सुनि झूम उठा मन क्या अब बोलूँ?

बंद सभी  शुभ छंद बनें,  हर पाठक  झूमत, मैं मन डोलूँ !! .. .

ताधिन ताधिन ताधिन ताधिन ताधिन ताधिन ताधिन धा धा.

भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भा भा.

 

हा हा हा हा .....  :-))))))))))))))))))))

गज़ब की जुगलबंदी....मजा आ गया

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
56 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
59 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' joined Admin's group
Thumbnail

धार्मिक साहित्य

इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,See More
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service