आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ बहत्तरवाँ आयोजन है।
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छंद का नाम - सरसी छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
18 ऑक्टूबर’ 25 दिन शनिवार से
19 ऑक्टूबर’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
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जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 18 ऑक्टूबर’ 25 दिन शनिवार से 19 ऑक्टूबर’ 25 दिन रविवार तक
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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वाह...दीपोत्सव के हर आयाम को समेट लिया है आपके इस गीत ने।अंतिम छंद का भाव बहुत सार्थक। हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक जी।
आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंद गीत पर आपकी सराहना ने सृजन को सार्थकता प्रदान की है. आपका हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय अशोक भाईजी, क्या ही सुंदर रचना हुई है ! वाह वाह !! .. एक-एक बंद जैसे प्रदत्त चित्र के मर्म को शाब्दिक कर रहा है.
बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार।
आए लेने नन्हे-मुन्ने, ख़ुशी-ख़ुशी बाज़ार।
समझ गए हम देख सजावट, नहीं छिड़ी है रार।
आया है फिर खुशियों वाला, दीपों का त्यौहार।। ... क्या ही रोचक मुखड़े से आरम्भ हुआ है और क्या ही स्पष्टीकरण तीसरे पद में ! बहुत सुंदर...
नये रंग से सजे सभी घर, जगमग करते द्वार।
चलो पहन लें वस्त्र नये हम, बाँटें सब में प्यार।
लाना है मिष्ठान हमें भी, सब लज्ज़त रसदार। .. यहाँ ’सब लज्जत रसदार’ अधिक उचित ’लज्जत में रसदार’ प्रतीत होता.. कृपया देख लें
आया है फिर खुशियों वाला, दीपों का त्यौहार।। .... आदरणीय शुद्ध शब्द मिष्टान्न है, मिष्ठान्न नहीं..
सजे-धजे बाज़ार बुलाते, लिये कई अरमान।
महँगाई के कारण जो थे, कल तक सब वीरान।
बाँट रहे उपहार वही अब, लगा-लगा अम्बार।
आया है फिर खुशियों वाला, दीपों का त्यौहार।। ... लगा-लगा अम्बार का जवाब नहीं, आदरणीय
गली-गली में भूख बढ़ाते, महक रहे पकवान।
गंध नासिका लेकर करती, जिन सबकी पहचान।
और स्वाद को जिह्वा देती, मन ही मन विस्तार।
आया है फिर खुशियों वाला, दीपों का त्यौहार।। ... दीवाली का बाजार बिना मिष्टान्न और पकवानों के पूरा होता ही कब है !
आकाशदीप भी लाएँगे, एक नहीं दो चार।
हमें सजाना हैं कुछ सूने, उन दीपों से द्वार।
बुझे हुए चूल्हों के जलते, बनना है अंगार। ... ..हो निर्धन परिवारों में भी, खुशियों की बौछार ..ऐसा उचित प्रतीत हो रहा है.
आया है फिर खुशियों वाला, दीपों का त्यौहार।।
आपका रचनाकर्म मुग्ध कर देता है, आदरणीय. हार्दिक बधाइयाँ ..
शुभातिशुभ
जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार।
आदरणीया प्रतिभाजी,
दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ ।
खिल उठता है बुझा हुआ मन, आते जब त्यौहार।। ....... सच है अभावों के बाद भी हर वर्ग को खुशी मिलती है।
हार्दिक बधाई सुंदर सरसी के लिए।
मिट्टी के दीपक को भी पर ..... पर मिट्टी के दीपक को भी, कम मत लेना मान॥
इस धरती पर जन्म लिया हम, ........... इस धरती पर जन्म लिए हम,करते इसपर गर्व।।
सादर
ग्राहक सोचे क्या-क्या ले लूँ , और किसे दूँ छोड़.... सच यही स्थिति होती है सजा हुआ बाज़ार देखकर. दीपावली पर हर दूकान ग्राहक को आकर्षित करती है. प्रदत्त चित्र अनुरूप आपने उत्तम सरसी छंद रचे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।
आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुति में जिन चिह्नों से युग्मकों को अलग किया गया है उन्हें हटा दिया जाय तो सरसी छंद का विधान संतुष्ट हो जाता है. सरसी छंद के चार पद होते हैं.
जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार।
सरसी छंद
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हर बरस हर नगर में होता, अरबों का व्यापार। दीवाली की रौनक देखो , खूब सजे बाजार॥ त्योहारों में छूट बहुत है, सस्ता हर सामान। बना चीन में या भारत में, रखना इसका ध्यान॥
आकाश को छूने लगा है, स्वर्ण रजत का भाव। खरीदना हो अगर असंभव, त्यागो मोह लगाव॥ वस्त्र पटाखे बर्तन लेलो, झालर रंग बिरंग। पटाखे चलायें जब बच्चे , रहिए उनके संग॥
दे आनंद तीन पीढ़ी को, दीवाली त्योहार।
साफ सफाई नित रंगोली, लगते बंदनवार।
दूर दूर रहना मजबूरी, बिखर गया परिवार। दीपावली मिलाती सबको, खुशियाँ मिले अपार॥
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मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय अखिलेश जी
चित्रानुकूल बहुत सुन्दर छंद सृजन। हार्दिक बधाई
आदरणीया प्रतिभाजी
हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।
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