For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ एकसठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम -  छंद मनहरण घनाक्षरी 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

23 नवंबर’ 24 दिन शनिवार से

24 नवंबर’ 24 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

23 नवंबर’ 24 दिन शनिवार से 24 नवंबर’ 24 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

Views: 108

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. 

सादर अभिवादन, आदरणीय।


शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।
यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन  पहुँची है शीत यहाँ।।
मौसम बैरी  अजब हो  गया, ढकती  धुंध  हर रूप यहाँ।
इस कारण ही नहीं मिल रही, जीव जहान को धूप यहाँ।।
*
छोड़ रहा शर शीत लहर के, जाड़ा अनौखे खूब यहाँ।
नभ के उर तो  पीर  बसी  पर, आँसू  समेटे  दूब यहाँ।।
हाड़ कँपाती ठंड कर  रही, बुरा निर्धन  का हाल बहुत।
उनको पड़ता फर्क न कोई, हैं जिन्हें स्वेटर शॉल बहुत।।
*
शीत लहर सह फैल रही है, देखो मौत की बात यहाँ।
दिन नारी  सा  घूँघट ओढ़े, थरथर  काँपती रात यहाँ।।
चहुँदिश लगी लालसा धूप की, नहीं सुहाती छाँव यहाँ।
ताप रहे हैं खूब  अलाव अब, भीतर  बाहर  गाँव यहाँ।।
*
झूम रहे हैं ओढ़े तुसार, गेहूँ सरसों के खेत बहुत।
प्यास बुझाती  ओस से, देखो  बिखरी रेत बहुत।।
साकल धरा ही अब लग रही, इक कुहरे की झील हमें।
घट कर  सूरज  भी नभ  में  लगे, जैसे  हो  कंदील हमें।।
*
पारा गिरकर जमी नदियाँ हैं, हिम शिखरों की गोद बहुत।
आते  हैं  हिमपात  में  करने, लोग  वहीं   आमोद  बहुत।।
देखो हिम से  लकदक  हो गये, घाटी  और   पहाड़ बहुत।
हर कामकाज अब ठप हो गया, दुनियाँ झोंके भाड़ बहुत।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर चर्चा कर आपने प्रस्तुति को पठनीय बना दिया है। 

चूँकि मैं कुछ और रचनाओं की प्रतीक्षा कर रहा था, अत: आपकी रचना पर आने में विलंब हुआ। 

मनहरण घनाक्षरी के मूलभूत नियमों के अनुसार चारों पदों में समान तुकान्तता होती है। बाकी, समतलों की व्यवस्था प्रवाह को साधने का काम करती है। 

प्रस्तुति हेतु पुन: बधाई। 

शुभ-शुभ

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण रचना पोस्ट करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

मूल रचना यह है। इस पर पुनः मार्गदर्शन का अनुरोध है। सादर...

शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, गरमी जा छिपी कूप यहाँ
पड़े फेर में ठिठुरन के हैं, निर्धन धनी हर भूप यहाँ।।
मौसम बैरी अजब हो गया, ढकती धुंध हर रूप यहाँ
इस कारण ही नहीं मिल रही, जीव जहान को धूप यहाँ।।
*
छोड़ रहा शर शीत लहर के, जाड़ा अनौखी चाल यहाँ।
तपता नभ भी ठिठुर रहा है, सूखा पसीना भाल यहाँ।।
हाड़ कँपाती ठंड कर रही, बुरा निर्धन का हाल यहाँ।
उनको पड़ता फर्क न कोई, हैं जिन्हें स्वेटर शॉल यहाँ।।
*
शीत लहर सह फैल रही है, देखो मौत की बात बहुत।।
दिन नारी सा घूँघट ओढ़े, थरथर काँपती रात बहुत।।
पहुँच न पायी धूप गुनगुनी, पीछे छोड़ बरसात बहुत
तपा रहे हैं तभी अलाव में, भीतर बाहर गात बहुत।।
*
झूम रहे हैं ओढ़ तुषार को, गेहूँ सरसों खेत जमे।
प्यास बुझाते फिरें ओस से, रेत के टीले खूब रमे।।
सकल धरा अब लगती देखो, एक कुहरे की झील हमे।
डर कर सूरज सिकुड़ा गगन में, लगता है कंदील हमे।।
*
पारा गिरकर जमी नदियाँ हैं, हिम शिखरों की गोद जहाँ।
जाते हैं हिमपात में करने, लोग बहुत आमोद वहाँ।।
हिम से लकदक सजधज जायें, अब ये घाटी  पहाड़ कहाँ।
हर कामकाज अब ठप हो गया, दुनियाँ झोंके भाड़ यहाँ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की जानकारी को नहीं पढ़ा. कहीं असावधानी हो गयी है यह. मनहरण घनाक्षरी 16,15 =31 वर्णों वाला वार्णिक छंद है जिसकी जिसे 8,8,8,7  की यति लेकर सुगमता से रचा जा सकता है. आपने किसी और छंद विधान के अनुसार रचना की है. सादर 

अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब। 

31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की आवश्यकता है। 

इस बार आयोजन हेतु मात्रिक-अर्द्धमात्रिक छंदों से भिन्न छंद लिया गया था। किंतु, वैसी सहभागिता न बन सकी। 

 जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. 

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार। 

निश्चित ही नियम समझने में भूल हुई है। वर्णों के स्थान पर मात्रा गणना हो गयी। इसके लिए बहुत खेद है। सादर...

मनहरण घनाक्षरी

 

नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार है।

हो रहा विमर्श किसी बात  पर बच्चों में दो, दिखता  न  किन्तु  कहीं  होती तकरार है।

सुलगा   अलाव   बैठे  सर्दियाँ  भगाने  दूर, दिन  छुट्टी  वाला  जैसे   आया  इतवार है।

या कि यही जीवन है, नन्हें-नन्हें गोपालों का, समय गँवाना यूँ ही, नित्य थक-हार है।।  

 #

~ मौलिक/अप्रकाशित.

आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है। हार्दिक बधाई। 

अंतिम पद को लेकर एक बात अवश्य निवेदन करना चाहूँगा। 

'नन्हें-नन्हें' के बाद 'गोपालों' के स्थान पर तीन वर्णों का कोई 'सलगा' शब्द होना चाहिए था, न कि 'मातारा'। लेकिन जिस शीघ्रता में आपने रचना पूरी की है, वह ही श्लाघनीय है। 

पुन: बधाई। 

शुभातिशुभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
51 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"विषय पर सार्थक दोहावली, हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी|"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाईसुशील जी, अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  इसकी मौन झंकार -इस खंड में…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा पंचक. . . .  जीवन  एक संघर्ष जब तक तन में श्वास है, करे जिंदगी जंग ।कदम - कदम…"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"उत्तम प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service