For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र-2122 2122 2122 212
काफ़िया- गुमरही "ई" स्वर
रदीफ़-"क्या चीज़ है"

ग़ज़ल-

समझा राहे-दिल से हट कर गुमरही क्या चीज़ है।
बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है।।

प्यार रब की बन्दगी है प्यार रब की है रज़ा।
प्यार से बढ़ कर जहाँ में दूसरी क्या चीज़ है।।

ख़ुश्क होठों पर ये रखते हैं तराने प्यार के।
आशिक़ों से पूछ लो दीवानगी क्या चीज़ है।।

उनको छेड़ा इक ज़रा तो हो गया चेहरा गुलाल।
खुल गया मुझ पर उभरती रौशनी क्या चीज़ है।।

उलझी उलझी रहती हूँ उसके ख़यालो-ख़्वाब में।
मैं नहीं ये जानती हूँ बे ख़ुदी क्या चीज़ है।।

काश रब हम को भी उन के जैसी दे देता कशिश।
हुस्न वालों को बताते तश्नगी क्या चीज़ है।।

आप ने जब हिज्र बख़्शा तब ये जाना "नाज़" ने।
कर्बो-ग़म कहते हैं किस को बेकली क्या चीज़ है।।

ममता गुप्ता "नाज़"

Views: 159

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2024 at 3:50pm

आ. ममता जी, अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई। 

Comment by Mamta gupta on July 20, 2024 at 2:12pm

आदरणीय सर सादर नमन  🙏 

मुझसे गलती से आपके कमेन्ट के साथ कई लोगों के कमेंट डिलीट हो गए इसके लिए क्षमा चाहती हूँ आपने ग़ज़ल को संवारने के लिए बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🌺🌺

मै सुधार करती हूँ 🙏

Comment by Samar kabeer on July 19, 2024 at 4:06pm

मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, इससे पहले भी कमेंट किया था जो आपकी ग़लती से डिलीट हो गया ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है'

इस मिसरे में 'बे सरोपाई' कोई शब्द नहीं है,एक शब्द है 'बे सरोपा' इसका अर्थ है,जिसका कोई सर पैर न हो, दूसरा शब्द है 'बे घरी' ये शब्द भी मेरी डिक्शनरी में तो नहीं है,बे घर ज़रूर है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं:-

'बे सरो सामानी है क्या मुफ़लिसी क्या चीज़ है'

'काश रब हम को भी उन के जैसी दे देता कशिश
हुस्न वालों को बताते तश्नगी क्या चीज़ है'

इस शे'र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं, क्योंकि ऊला में आप उनके जैसी कशिश माँग रही हैं और सानी में तिश्नगी का ज़िक्र कर रही हैं, उचित लगे तो तिश्नगी की जगह "दिलकशी" कर लें ।

एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि ग़ज़ल में किसी तरह के भी विराम चिन्हों का प्रयोग नहीं किया जाता ।

कुछ टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त करें:-

राहे--'राह-ए-'

बन्दगी--'बंदगी'

चेहरा--'चहरा'

ख़यालो ख़्वाब--'ख़याल-ओ-ख़्वाब'

कर्बो ग़म--'कर्ब-ओ-ग़म'

Comment by Mamta gupta on July 19, 2024 at 1:47pm

आदरणीय @Euphonic Amit उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया आपका

Comment by Euphonic Amit on July 15, 2024 at 7:37pm

अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service