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अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

1222   1222   1222   1222

हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।

बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।

फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,

मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।

कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,

तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी बहो,बोलो।

सही लोगों को तो ये दौर कुछ कहने नहीं देता,

मगर सच्चाई के हक़ में सभी कुछ भी करो,बोलो।

मेरे हमअसरों कुछ पहचानों तुम स्याही की ताकत को,

सफेदी ओढ़े लोगों पर मलो कालिख लिखो, बोलो।

यहाँ से रास्ता कोई भी उसके दर नहीं जाता,

मैं अब जाऊँ कहाँ,यारों मेरे मुझपर हँसो,बोलो।

मेरे इन शेरों में कोई ग़ज़ल का गुण नहीं दिलबर,

तुम इनमें अपने ग़ुम होने की आहट को सुनो,बोलो।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2024 at 2:22pm

आ. भाई मनेज जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by मनोज अहसास on February 14, 2024 at 12:09pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वर्मा जी

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2024 at 10:46pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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