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अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

1222   1222   122
1
मुझे महसूस करते थे खुशी से
मगर ये अब न कहना तुम किसी से
2
मुझे चाहत नहीं है अब किसी की
मुझे चाहत रही है पर सभी से
3
तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर
मैं बातें कर रहा था अजनबी से
4
तनाफुर दिखता होगा शेर में अब
मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से
5
मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर
हमें काफिर रिझाते मयकशी से
6
शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है
बिठायें संतुलन कैसे सभी से
7
ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते
तुझे छूते तो भरते ज़िंदगी से
8
तकाबुल ए रदीफन ? छोड़िये भी
यहाँ कुछ शेर भी हैं आदमी से
9
मैं उनको भूल कर खुश हो रहा हूँ
मगर यें मरहले हैं याद ही से
10
उन्होंने कह दिया किसने कहा है?
किसी को दोस्त समझा था खुशी से
11
मैं अपने आप में यूँ कैद हूँ अब
समंदर घिर गया जैसे नदी से
12
तड़फ के और भी रस्ते हैं लेकिन
मुझे बस चैन मिलता शाइरी से

मौलिक और अप्रकाशित

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