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'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 145

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ पैंतालिसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए दो छंद लिये गये हैं - दोहा छंद या / और कुकुभ छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

दोहा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें 

कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

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Replies to This Discussion

आदरणीय सर उम्दा दोहे हुए हैं| सादर|

आदरणीय अशोक भाईजी 

यह दूसरी प्रस्तुति और भी बेहतर है हार्दिक बधाई।

आयोजन में आपकी दूसरी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक साहब. 

प्रदत्त चित्र की भाव-दशा को विस्तार देते हुए दोहे हुए हैं। 

हार्दिक बधाइयाँ 

एक रचना दोहा और कुकुभ के मेल से
________________________

जेठ माह में कौन ये, होकर ऊँट सवार,
रेगिस्तानी धूप में, घूम रहा है थार

लन्दन से इक गोरा आया, निपट अकेला निकला है
पूछा इसने जाने किस से, किस बाबा का चेला है
आग बरसती आसमान से, श्रीमान इस राह आये
इस उजाड़ के जानकार को, साथ नहीं क्योंकर लाये

कुदरत के रूप से, क्या तुम थे अनजान
हो जायेगा हाल यह, तनिक नहीं था भान!!

बहती नहीं हवा इस भू पर, यहाँ आग ही उड़ती है
रेत-कणों की टक्कर तनपर, शोलों जैसी लगती है
छाँव नहीं है, नीर नहीं है, यहाँ दिशाएँ ना सूझें
दूर-दूर तक जीव नहीं है, मार्ग भला कैसे बूझें

बोला गोरा है मुझे, इस भू का सब बोध,
मैं तो करने को यहाँ, आया इक नव शोध,

खनिज भरी है भूमि यहाँ पर, आप लोग हैं अनजाने
सौर शक्ति का स्रोत बड़ा ये, कोई क्यों ना पहचाने
परिस्थिति विपरीत सभी पर, जीवट ढाणी-ढाणी में
जीवन कैसे संभव रखते, कम हरियाली-पानी में?

कण-कण में मरुभूमि के, छिपे अनेक रहस्य
आओ उनको ढूँढने, सभी त्याग आलस्य

#मौलिक एवं अप्रकाशित

जनाब अजय गुप्ता 'अजेय' जी आदाब,दोहा और कुकुभ छंद के मेल से आपने अच्छा प्रयास किया है,यह कहाँ तक उचित है इस पर जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब बताएँगे, मेरी तरफ़ से इस प्रयोग पर बधाई स्वीकार करें ।

'कुदरत के रूप से, क्या तुम थे अनजान'

इस पंक्ति के विषम चरण में 2 मात्राएँ कम हैं,शायद टंकण त्रुटि के कारण 'इस' शब्द लिखने से रह गया है, देखें ।

'बहती नहीं हवा इस भू पर, यहाँ आग ही उड़ती है
रेत-कणों की टक्कर तनपर, शोलों जैसी लगती है'

इन पंक्तियों की तुकांतता मुझे ठीक नहीं लगती, देखें ।

बहुत आभार आदरणीय समर साहब जी।

//शायद टंकण त्रुटि के कारण 'इस' शब्द लिखने से रह गया है, देखें ।//। जी, आपकी पारखी नज़र ने सही पहचाना। ये लिखने से रह गया

 

//इन पंक्तियों की तुकांतता मुझे ठीक नहीं लगती// जी, इसमें सुधार करने का प्रयास करता हूँ।

पुनः बहुत बहुत धन्यवाद 

आदरणीय अजय भाईजी

आपका यह प्रयोग पसंद आया, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए 

आदरणीय अजय गुप्ता ’अजेय’ जी,

आपने इस आयोजन के लिए मान्य दोनों छंदों के सम्मिलन से एक सुन्दर गेय रचना तैयार की है। रचना प्रस्तुति में इस नवाचार हेतु हार्दिक बधाइयाँ। प्रस्तुति की पंक्तियों में अपेक्षित बहाव है। यह आपकी शिल्प साधना का परिचायक है। 

इस उजाड़ के जानकार को, साथ नहीं क्योंकर लाये ...  इस पद में क्योंकर का किस अर्थ में प्रयोग हुआ है, आदरणीय ? 

क्यों और क्योंकर में कोई साम्य नहीं है। 

आदरणीय समर साहब ने जो बिन्दु उठाये हैं, उसी के परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित पंक्ति भी एक दृष्टि चाहती है - 

परिस्थिति विपरीत सभी पर, जीवट ढाणी-ढाणी में 

इसके विषम चरण की मात्रा कम है। 

तथा, आओ उनको ढूँढने, सभी त्याग आलस्य .....   आओ उनको ढूँढने, त्याग सभी आलस्य .. ऐसा किया जाना चरण की संप्रेषणीयता अवश्य ही बढ़ा देगा। 

वैसे, आपने प्रस्तुति के अंतिम बंद को सुन्दर आयाम दिया है। इस हेतु विशेष बधाई 

शुभातिशुभ

दोहा छंद

+++++++++

 

मंजिल कितनी दूर है, लगे न कुछ अंदाज।

कहते हैं सब ऊँट को, मरुस्थलीय जहाज॥

मूक ऊँट का आसरा, ले जाये जिस ओर।

मीलों चलता जा रहा, ओर दिखे ना छोर॥

प्यास यहाँ बुझती नहीं, चैन मिले न करार।

सन्नाटा चहुँ ओर है, गर्म हवा की मार॥

 

पानी पूरा पी गया, एक एक कर घूँट।

पार लगाएगा यही, देव तुल्य है ऊँट॥

ऊँट रेगिस्तान में, नभ में है कर्तार।

न सुने एक न दूसरा, मेरी करुण पुकार॥

लगता अंतिम सफर है, मित्र न रिश्तेदार।

मन शंकित है देखता, यम के पहरेदार॥

मानव को मिलती सजा, कर्मों के अनुसार।

शायद वो भी जा रहा, नरक लोक के द्वार॥

जीवन पथ अनजान है, मनुज रखे यह ध्यान।

साथ चलो आनंद है, मिला दार्शनिक ज्ञान॥

......................... 

मौलिक अप्रकाशित

 

जनाब अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी आदाब, प्रदत्त चित्र को सार्थक करते दोहों का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

कुछ पंक्तियों के शिल्प पर जनाब सौरभ पाण्डेय जी की टिप्पणी देखना चाहूँगा ।

ऊँट रेगिस्तान में' --मात्राएँ कम हैं,देखें ।

'लगता अंतिम सफर है, मित्र न रिश्तेदार'

इस पंक्ति के विषम चरण को यूँ कहें':-

'लगता अंतिम है सफ़र'

बाक़ी शुभ-शुभ ।

आदरनीय समर कबीर भाईजी

आपके सुझाव सही हैं। पोस्ट करने केबहुत देर बाद मैं मात्रा  पर ध्यान दे पाया।  प्रतिक्रिया और प्रशंसा   के लिए हार्दिक धन्यवाद ।  

आदरणीय अशोक भाईजी

 पोस्ट करने के बहुत देर बाद मैं मात्रा  पर ध्यान दे पाया।  प्रतिक्रिया और प्रशंसा   के लिए हार्दिक धन्यवाद ।  

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