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कितना क़ायदा, कितना सलीका
ले आये हैं हम दुनिया में
दिन हैं मुक़र्रर सब कामों के
माँ और बाप को
उस्तादों को, और वतन को
यादों में लाने के लिए और
कितनी इज़्ज़त कितनी अक़ीदत
उनके लिए है दिल में हमारे
सबको बतलाने के लिए
और इक दिन है इश्क़ के नाम भी
वैलेनटाइन डे कहते हैं जिसको
जब भी आता है ये दिन तो
एक अजब एहसास सा दिल में भर जाता है
सोचता हूँ कि एक ही दिन क्यों रक्खा गया है
इश्क़, मुहब्बत, प्यार के नाम
प्यार भी क्या अब काम है कोई
जिसको साल में एक बार बस
रस्मन करना है हम सब को?
अस्ल में प्यार तो वो जज़्बा है
जिसके बिना सब कुछ है अधूरा
सब ख़ाली और बे-मा'नी है
है ही क्या इस दुनिया में गर
इश्क़, मुहब्बत, प्यार न हो तो
प्यार के नाम ही होना चाहिए
हर दिन हर पल इस जीवन का
अब जो मनाया जाता है ये
वैलेनटाइन डे धूम धाम से
दुनिया भर में हर इक साल तो
मुझको यूँ लगता है जैसे
इश्क़ चल बसा है दुनिया से
और हर साल सभी अब मिल कर
बरसी मनाते हैं हम उसकी
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 8:45pm

आ. भाई रवि भसीन जी,सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकारस्वीकारेंं ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 16, 2020 at 9:13pm

आदरणीय समर कबीर साहब, हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on February 16, 2020 at 8:37pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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