For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

94
अच्छे दिन!
------------
राहु कुपित हैं या शनि की महादशा का प्रभाव
मंगल विमुख हैं या गुरु की कृपा का अभाव,
कितनी दयनीय दशा है...... ! ! !
अनिरुद्ध कालचक्र कैसा फंसा है!
विवेचना .... थकती है, कथनी.. रुकती है,
रूखी सूखी सी लगातार....साॅंस..... बस, चलती है ! ! !


घर - बाहर , बाजार - बीहड़, दिन - रात,
अन्तर्वेदना, करुणा, निराशा के आघात,
नियामक ने व्युत्क्रम स्वरूप तो लिया नही !
अदभुद् विकल्पों को आधार मिला नहीं !…
फिर भी.... ये दुविधा ! अनचाही विपदा ! !
अटकलों की दौड़ .... जारी... है सदा सर्वदा ! ! !
सच ! बुरे दिन! यही हैं? यही हैं ?....


आचार्य शंकर की हृदय प्रवेशी शक्ति को लेकर
घूमा मैं आज-- - मन, मन के अंदर,
जरा हो या युवा , कीट हो या जड़,
वही अपूर्णता , वही लालसा, वही अतृप्ति ! ! !
त्राहि त्राहि की रट, एक सी आग.....
अभावों की झड़ी ... काम ... काम... काम...।

फिर! अच्छे दिन! क्या हैं ? ? ?
16 जून 1982
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 583

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on July 19, 2016 at 4:55pm

रचना पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए विनम्र आभार , आदरणीय सौरभ पाण्डे जी। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2016 at 10:52pm

आदरणीय टीआर सुकुल जी, इस मंच पर बहुत दिनों बाद इस शैली की इतनी प्रभावी रचना प्रस्तुत हुई है जिसके इंगित न केवल मनन-मंथन के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि गहन वैचारिकता की घूर्णन से संभावित परिणाम केप्रति उत्सुक भी करते हैं. जीव-निर्पेक्ष भाविक दशा के सापेक्ष तृष्णा का जैसा वर्णन हुआ है, वह आपकी सोच के विस्तार का आश्वस्तिकारी द्योतक है. 

इस भावदशा के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय

सादर

Comment by Dr T R Sukul on June 6, 2016 at 3:40pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी,
रचना पर अपनी उपस्थिति देते हुए भावपूर्ण टिप्पणी करने के लिए सादर धन्यवाद।

Comment by Dr T R Sukul on June 6, 2016 at 3:35pm

आदरणीया राहिला जी , रचना पर आपकी प्रसन्नतादायक टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद। 

Comment by pratibha pande on June 6, 2016 at 12:24pm

आचार्य शंकर की हृदय प्रवेशी शक्ति को लेकर
घूमा मैं आज-- - मन, मन के अंदर,
जरा हो या युवा , कीट हो या जड़,
वही अपूर्णता , वही लालसा, वही अतृप्ति ! ! ! ....बहुत प्रभाव शाली पंक्तियाँ हैं ये  अद्भुत रचना   लगभग ३४ साल पहले की ये रचना आपकी , आज के समय के लिए ही कही गई लग रही है    हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय  

Comment by Rahila on June 5, 2016 at 9:27am
खूब खोला अच्छे दिनों का चिट्ठा, बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर जी! खूब, खूब बधाई । सादर प्रणाम

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service