For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बन गया मैं यूँ खुदा सूली पे चढ़ जाने के बाद

2122 2122 2122 212

बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,
पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |

बनके पत्थर देखता हूँ,  इंतिहा बुत परस्ती की,
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |
 
मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,
लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |

बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,
हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |

इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद |

***

"मौलिक व अप्रकाशित" © हर्ष महाजन

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 5:40pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी पसंदगी के लिए दिल से शुक्रिया आपका | आपके आने से ग़ज़ल ग़ज़ल पूर्ण हुई सर ...शुक्रिया एक बार फिर ||

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 5:36pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका हार्दिल आभार .....आपकी, दोष के प्रति, निशानदेही बिलकुल सही है सर, "नर्म" की जगह   नरम कह  गया हूँ | मेरा दिल से आभार है सर |
मक्ते का शेर बदल दिया था सर |

अब दोनों शेर यूँ हुए सर..
________________________

2122           2122          2122        212
बे-वफाई छेदती है, नरम दिल की परतों को,
हूर रुख़्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |

००००

इतना रोया/ हूँ मगर अब /अश्क आँखों/ में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद
_______________________________

आपसे एक बार फिर अनुरोश है सर देखिएगा !!


साभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 2:25pm

आदरणीय हर्ष जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है. दाद कुबूल फरमाए और गुनीजनों की इस्लाह पर गौर अवश्य फरमाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 2:03pm

आदरणीय हर्ष भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

ये दोनो शे र बे बहर हो गये हैं , देख ली जियेगा  --

बे-वफाई 2122 /  छेदती है 2122 ,/  नरम दिल की 1222  /  परतों को, 212
हूर रुक्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |   रुख़्सत  या रुक्सत

इतना रोया 2122  /   हूँ ‘हर्ष’ अब  2212 / अश्क आँखों 2122 / में नहीं, 212
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद |

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 1:22pm

आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी आपको मेरी अदना सी कोशिश पसंद आई उसके लिए मैं तह-ए-दिल से शुक्र गुज़ार हूँ |उम्मीद करता हूँ आपका स्नेह यूँ ही बना रहेगा | आभार !!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 8:00am

कमाल ....वाह आदरणीय हर्ष जी 

बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद, 
पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |

Comment by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 9:24pm

आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी इस स्नेह के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |हाँ आपने सही निशानदेही की है ..इस दोष को बताने के लिए एक बार पुन: धन्यवाद....
इसकी जगह अभी इस मिसरे को रखता हूँ ...
________________________

2122           2122          2122        212

इतना रोया/ हूँ मगर अब /अश्क आँखों/ में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद
_______________________________

साभार !!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 3, 2015 at 9:02pm

बनके पत्थर देखता हूँ,  इंतिहा बुत परस्ती की,
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |   

       

बेहतरीन गजल हुयी है आ० हर्षसरजी !तहेदिल से दाद प्रेषित हैं!

आ० शायद मक्ता में उला बेबहर लग रहा है!देख लीजिये !

2122 2122 2122 212

इतना रोया/ हूँ ‘हर्ष’ अब /अश्क आँखों/ में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद

Comment by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 6:54pm

क्षमा चाहता हूँ बह्र लिखना भूल गया ...
____________________
2122 2122 2122 212
____________________

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service