For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ सामयिक दोहे

अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|

सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||

कल तक जो थी मित्रता, आज न हमें सुहाय|

तूने छेड़ा है मुझे, अब खुद लियो बचाय||

सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|

बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||

शहर कभी गुलजार था, धरम बीच क्यों आय|

कल तक जिससे प्यार था, फूटी आँख न भाय!!

पत्थर गोली गालियाँ, किसको भला सुहाय|

अमन चैन से सब रहें, फिर से गले लगाय  ||

(मौलिक व अप्रकाशित) 

जवाहर लाल सिंह 

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 29, 2015 at 8:32pm

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब! कोशिश करता हूँ पर अभी और मिहनत करने की जरूरत है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 8:25am

आदरनीय जवाहर भाई , आपके दोहों पर सुन्दर सार्थक चर्चा हुई है । दोहों के लिये आपकोअ हार्दिक बधाइयाँ । आ, मिथिलेश जी की सलाहों पर अमल कीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 24, 2015 at 10:46pm

आदरणीय जवाहर जी आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक आभार 

यह भी है कि इस मंच पर हम सभी समवेत सीख रहे है. इसलिए आपका ये कहना -//आपने मुझे अपना शिष्य बना लिया// उचित नहीं है. आप इस मंच पर मेरे अग्रज है. मैंने छंद लिखना इसी मंच पर सीखा है और अभी अभ्यासी ही हूँ. 

आप मंच के पुराने सदस्य है अतः नए सदस्य आपकी प्रस्तुति को सदैव महत्त्व देंगे और प्रेरित भी होंगे अतः उनके लिए उचित मानक अनुसार रचना करना भी  हमारा दायित्व है. इसलिए ये बातें साझा की है.  ये मेरा स्वयं का अनुभव है कि जब मंच पर आया था तो सबसे पहले अपने अग्रजों की रचनाओं का पाठ किया उसी के अनुरूप रचनाओं के लिए अभ्यास किया है. आज भी वाही प्रक्रिया जारी है. सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 24, 2015 at 6:51pm

आदरणीय सुशील सरना जी, सुझावों का हमेशा स्वागत करता हूँ, यह सीखने-सिखाने का मंच है हमलोग एक दोसरे से ही सीखते हैं इसलिए अन्यथा लेने का सवाल ही नहीं है. मैंने आदरणीय मिथिलेश जी के सुझाव और सुधार को सहृदयता से अपनाया है. मेरा अनुरोध रहेगा कि आप सभी मेरी त्रुटियों से जरूर अवगत कराएँ ...छंद रचना, गजल, शेर आदि बहुत आसन नहीं है जैसा हम समझते हैं ...सुधार की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है ... सादर! आपके द्वरा बताई गए त्रुटियों की तरफ मेरा ध्यान गया है ..कोशिश करूंगा आगे ऐसी गलतियाँ न हो  

Comment by Sushil Sarna on July 24, 2015 at 4:04pm


आदरणीय सुंदर भावों की इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई हालांकि प्रस्तुति में कई चरणों में मात्रिक/शब्द संयोजन का दोष है जैसे :
अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
इसमें प्रथम पंक्ति के विषम चरण में १३ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।
इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति के विषम चरण में १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हो रही हैं।
प्रथम पंक्ति के विषम चरण का शब्द संयोजन 4432 ,द्वतीय पंक्ति के विषम चरण का शब्द संयोजन 33232 के अनुरूप होना चाहिए।


सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
प्रस्तुत दोहे की प्रथम पंक्ति के सम चरण में ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।
द्वितीय पंक्ति के सम चरण में भी ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।

शेष आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के मार्गदर्शन का अनुसरण कर दोहों की ख़ूबसूरती बधाई जा सकती हैं।
इस सुंदर भावपूर्ण प्रयास एवं प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। हो सकता है मुझसे भी कहीं गलती हों अतः कृपया किसी बात को अन्यथा ने लेवें मैं भी आपकी तरह इस विधा इस मंच के गुणीजनों का शिष्य हूँ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 24, 2015 at 9:13am

आदरणीय मिथिलेश जी, सादर अभिवादन! सुझाव के साथ सुधार कर आपने मुझे अपना शिष्य बना लिया ...आगे भी कोशिश जारी रहेगी और आपके मार्ग दर्शन की अपेक्षा रक्खूँगा ... बहुत बहुत आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 23, 2015 at 11:17pm

आदरणीय जवाहर सिंह जी, सामयिक संवेदनाओं से गुजरते हुए आपका शाब्दिक किया गया प्रयास भाव स्तर पर अच्छा हुआ है इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. 

लेकिन यह भी अवश्य है कि सामयिक विषय पर लिखते समय भाषा और शब्द चयन भी सामयिक होता तो दोहावली और अधिक प्रभावकारी होती. आय, जाय, बजाय, बचाय, लगाय, सुहाय आदि शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल की भाषा या काव्य की किसी दूसरी विधा में नहीं होता न ? फिर क्यों दोहा छंद की रचना में हिंदी भाषा का प्राचीन या आरंभिक स्वरुप आ जाता है. इस भाषा का प्रयोग कम से कम आज तो नहीं होता. शब्दों का यह रूप भक्तिकाल, रीतिकाल तक प्रचलित था. अब जैसा इन शब्दों का रूप है वैसे ही इनका प्रयोग उचित है. यह मेरी व्यक्तिगत राय है. इन दोहों को कुछ यूं भी कहा जा सकता था-

कभी न जोड़ो धर्म को, अपराधों के साथ

ऐसे तो क़ानून को,  मत लो अपने हाथ

 

क्यों यारों के बीच में, आज हुआ है बैर

जिसने छेड़ा है नगर, स्वयं मनाये खैर

 

सूनी सड़कें, सायरन, पुलिस, खौफ, बन्दूक

बच्चे तरसे दूध को, क्या ममता की चूक ?

 

नगर कभी गुलज़ार था, उफ़ अधर्म की रीत

आँखों का काँटा बनी, कल तक थी जो प्रीत

 

पत्थर, गोली, गालियाँ,  किसको भाती यार

अमन चैन से सब रहें, फिर से बांटे प्यार

भाव और शब्द आपके ही है केवल विन्यास थोड़ा बहुत बदला है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
2 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सम्माननीय ऋचा जी । बहुत बहुत आभार"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service