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एक था टाईगर (लघुकथा)

एक दिन वह अपने जर्मन शेफर्ड को सुबह घुमाने ले गई तो गलती से एक व्यक्ति के घर पर बंधा पामेरियन भी था , पामेरियन भौंका तो टाइगर ने जंजीर को तेजी से छुड़ाते हुए पास में बंधे एक पामेरियन को दबोच लिया ।

"टाइगर इधर आओ छोड़ो उसको " बिटिया चिल्लाई 

वहां खड़े और लोग भी पामेरियन को बचाने में जुट गये। और उस लड़की को  भला बुरा कहने लगे:

"जब आप से कुत्ता नहीं सम्भलता तो इसे पालते क्यों हो ?

तभी किसी ने टाइगर के सर पर तेजी से लोहे की रॉड से वार किया ।

"बेचारी लड़की भागती हुई बदहवास सी भागती हुई घर आई !!" " मम्मी उन लोंगो ने टाइगर को लोहे से मार डाला "। 

जब तक उसको हस्पताल ले जाते तब तक उसने उसकी गोदी में अपनी आखिरी साँस ली और दुनिया से रुखसत कर गया ।

उसे आज आदमी और जानवर का  फर्क सामने ही नजर आ रहा था  ।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 10:25pm
सर आप की कहानी रोचक है पर आप को स्पस्ट कहना चाहिए की आप क्या सन्देश देना चाहते हैं । कहानी सरल है सादे शब्द है पर कही कुछ अधुरा पन है ......आलोचना के लिए क्षमा चाहुगा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 10:13pm

आज आदमी और जानवर का  फर्क सामने ही नजर आ रहा था !
सही है, पामेरियन तो फिर भी बच गया था. उस अल्शेशियन के तो प्राण-पखेरू उड़ गये थे. इस विन्दु के सापेक्ष आपकी प्रस्तुति सोचने को बाध्य करती है. लेकिन यह भी सही है कि इस इंगित में साहित्यिक प्रस्तुति के हिसाब से नयापन नहीं है.
एक अत्यंत प्रसिद्ध फ़िल्मी गीत इन्हीं संदर्भों में है. आपने भी सुना होगा - जब जानवर कोई इन्सान को मारे / वहशी है, दुनिया में / कहते उसे सारे / इक जानवर की जां आज इन्सानों ने ली है.. / चुप क्यूँ है संसार ?

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, आदरणीय पंकजजी.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 8, 2015 at 10:26pm

उसे आज आदमी और जानवर का  फर्क सामने ही नजर आ रहा था  

नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार के दुनिया में खुश रहना मेरे यार! हाथी मेरे साथी का वो गाना याद आरहा है! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:59pm

इस कथा पर कोई टिप्पणी न देखकर आश्चर्य हुआ . कथा का सन्देश ठीक था  पर सम्प्रेषण में कुछ कमी रही .आगे बेहतर की उम्मीद करते हैं . सादर .

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