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गज़ल..........'जान' गोरखपुरी

२ १ २ २

 

इश्क क्या है?

इक दुआ है

 

दिल इबादत

कर रहा है

 

अपना अपना

कायदा है

 

पत्थरों में

भी खुदा है

 

कौन किसका

हो सका है

 

नाम की ही

सब वफा है

 

बस मुहब्बत

आसरा है

 

बिन पिये दिल

झूमता है

 

आँख उसकी

मैकदा है

 

फूल कोई

खिल रहा है

 

कातिलाना

हर अदा है

 

क्या हुआ गर

बेवफा है

 

जहर भी तो

इक़ दवा है

 

अब मुकम्मल

फैसला  है

 

तुम हो और ना

दूसरा है

 

बस गज़ल अब

हमनवा है

 

मै रदिफ वो

काफिया है

 

************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी

***********************************

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 10:03am

उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया,जी सभी आ० जनों के मार्गदर्शन के अनुसार सुधार करने कि कोशिश की है!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 4, 2015 at 10:35pm

छोटी से छोटी बह्र को बखूबी निभा गए आप कृष्ण जी ,

पत्थरों में

भी खुदा है---बहुत खूब 

 

कौन किसका

हो सका है---वाह्ह्ह्ह 

सभी शेर शानदार हुए ,बस दो में संशय है जिनकी और पहले से ही इशारा किया जा चूका उसका निवारण भी कर लेंगे आप मुझे विश्वास है |बहुत बहुत बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 7:31pm

आज लाइटर मूड में था सर! इसलिये वाक्यों पर विशेष ध्यान नही दिया>>//अभी छोटा ही निभ जाए वही बहुत है! आ० आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये.आप की कृपा से छोटे स्वमेव ही बड़ा हो जायेगा!?//

आशय बस इतना था कि '' गुरु का सतत आशीर्वाद व् मार्गदर्शन रुपी कृपा बनी रहे तो मूढ़ व्यक्ति भी ज्ञानी बन जाता है'' !!

आ० मंच की परम्परा के अनुसार सभी एक दुसरे से सीख़ रहे है,पर मंच पर मौजूद आप जैसे वरिष्ठ सदस्य,आ० गोपाल सर,आ० गिरिराज सर,आ० rajesh kumari जी,आ० बागी सर आ० योगराज सर आदि के लिए श्रद्धाभाव से मन के उद्गार स्वरूप शब्द स्वतः फूट पड़ते है!! जो कि आप सभी के निःस्वार्थ भाव से विद्यादान,मार्गदर्शन और साहित्यसाधना के कारण है!

आ० मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ के पहले मुझे खोजबीन करके और तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखनी चाहिए थी न कि अपने भ्रम को अनुमोदित करना चाहिए था!((पर इससे हटकर केवल लघु का प्रयोग भी देखने को भी मिलता है!)) मेरा सौभाग्य है कि मंच की नजर मुझ पर है,और यही प्रार्थना भी है कि आप सब का अमूल्य मार्गदर्शन सदाव बना रहें!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2015 at 4:12pm

नाम के साथ ये गुरुवर क्या ठोंक देते हैं जी ?

यदि जानकारी के लिए ख़ोज़बीन में लगे हैं तो अच्छी बात है. फिर ख़ोज़बीन ढंग से कर लीजिये. अगर इस विन्दु से उलट बात मिलेगी जो किसी के द्वारा निभायी गयी अपवाद नहीं होगी तो आकर साझा कर लीजियेगा. अच्छा भी लगेगा. ये क्या कि भारी भरकम विशेषण और संज्ञा थोपते चलिये और कहे पर शुबहा भी पाले रहिये ! .. है न ?

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 4:03pm

जी गुरुवर मैंने स्वयं माना है आ० केवल जी की बात सही है,आज इस संबंध में ही खोजबीन में लगा  हूँ..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 3:56pm

हा हा हा! आ० मनन जी बहुत बहुत शुक्रिया!आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2015 at 3:55pm

केवलभाईजी की बात सही है. भाई, उसको सुनिये.. ऐसे में अन्यथा बतकही अच्छी बात नहीं है. सीखने के क्रम में यह बहुत बडी बाधा हुआ करती है.

//अभी छोटा ही निभ जाए वही बहुत है! आ० आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये.आप की कृपा से छोटे स्वमेव ही बड़ा हो जायेगा! //

तब आप निभा चुके..

भाईजी, मंच आपको बड़ा मान्यूटली ऑब्जर्व कर रहा है.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 3:55pm

आ० गुरुवर सौरभ सर छोटा को निभाने में ही सब करम हुए जा रहे है !:-):-) अभी छोटा ही निभ जाए वही बहुत है!

आ० आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये.आप की कृपा से छोटे स्वमेव ही बड़ा हो जायेगा!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 3:42pm

आभार आदरणीय!जितेन्द्र सर ज़ी! सादर

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 4, 2015 at 3:41pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ० केवल प्रसाद जी,आपकी बात के बाबत मुझे जो जानकारी, आपकी बात सही है अक्सर शब्द जुड़े रहते है अतरिक्त लघु में पर,पर इससे हटकर केवल लघु का प्रयोग भी देखने को भी मिलता है!

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