For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न मैखाना शहर में है

बता दो याद अब उनकी मिटायें हम कहॉं जाकर

लिखा जो प्‍यार के किस्‍से सुनायें हम कहॉं जाकर

बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी
नज़र उसको लगी मेरी बतायें हम कहाँ जाकर

न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल लगायें हम कहाँ जाकर

न पीया जाम क्‍यों मैने अगर पूछो न तुम मुझसे
नजर बोतल में आती तुम दिखायें हम कहाँ जाकर

मिला कर जाम में पानी कभी क्‍यूँ मै नहीं पीता
शहर में अश्‍क बहता है मिलायें हम कहॉं जाकर

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 10:13pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी, इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई, सादर।

बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी

नज़र उसको लगी मेरी बतायें हम कहाँ जाकर....क्या बात है ,सुन्दर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 7, 2015 at 10:03am

बेहतरीन गजल रचना  के लिए बधाई श्री अखंड गहमरी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:50am

आदरणीय अखंड भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आ. मिथिलेश भाई की सलाह पर गौर की जियेगा ।

Comment by Akhand Gahmari on February 6, 2015 at 10:52am

आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी आपका सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिये आपको नमन

आपके मार्गदर्शन के अनुसार मैने गजल में कुछ  परिवर्तन किया जिसे देखे

बता दो याद अब उनकी मिटायें हम कहॉं जाकर लिखा जो प्‍यार के किस्‍से सुनायें हम कहॉं जाकर

बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी
नज़र उसको लगी मेरी बतायें हम कहाँ जाकर

न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल लगायें हम कहाँ जाकर

न पीया जाम क्‍यों मैने अगर पूछो न तुम मुझसे
नजर बोतल में आती तुम दिखायें हम कहाँ जाकर

मिला कर जाम में पानी कभी क्‍यूँ मै नहीं पीता
शहर में अश्‍क बहता है मिलायें हम कहॉं जाकर
अखंड गहमरी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 10:11am

आदरणीय अखंड जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है बह्र-ए-हज़ज को खूब निभाया है दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

टंकण त्रुटी- मतले और आखिरी शेर में कहॉं को कहाँ और चौथे शेर में बोलत को बोतल कर ले. एक शेर पर निवेदन करना चाहूँगा -

न पीया जाम क्‍यों मैने अगर पूछो न तुम मुझसे
नजर बोलत में आती तुम बतायें हम कहाँ जाकर

इस शेर के मिसरा-ए-उला में बह्र का दबाव महसूस हो रहा है इसे अगर उचित लगे तो कुछ यूं भी कहा जा सकता है-

न पीया जाम क्‍यों मैने कोई पूछो न अब मुझसे
नजर बोतल  में आती वो बतायें हम कहाँ जाकर

इसी तरह एक और अशआर पर अपने विचार साझा करना चाहूँगा यदि आपको उचित लगे तो निवेदानार्थ -

न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको
जरा कोई बताये दिल जलायें हम कहाँ जाकर

इसमें मिसरा-ए-उला में  न उसका घर पता मुझको --में पता शब्द से दो अर्थ  ध्वनित हो रहे है एक जानकारी, और दूसरा एड्रेस. यदि इसे वाक्य में बदले तो इसे कहेंगे - मुझे उसके घर की जानकारी नहीं है या उसका घर कहाँ है मुझे नहीं मालूम. यदि यहीं ध्वन्यार्थ है तो इसे यूं कह सकते है- 

न मैखाना शहर में है, न उसका घर मुझे मालूम 
जरा कोई बताये, दिल जलायें हम कहाँ जाकर

Comment by Shyam Narain Verma on February 6, 2015 at 9:56am

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल फरमायें

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 12:58am
सुन्दर, आदरणीय अखंड गहमरी जी, बधाई, सादर।
Comment by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 7:27pm
लूट लिया साहब आपने।।जय हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service