For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काशी की दुनिया.........

काशी की दुनिया हो
या काबा की बस्ती हो
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।
साहिल से बिछड़ी हुई
मुक़ाम-ए-पास हो जाए
लहरों में फँसती चाहे
केवट की कश्ती हो।।
शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।
मातहतों की मस्ती हो
या निगाहबां की गस्ती हो
हो सके न हावी कभी चाहे
मेरे अहबाब की नारास्ती हो।। .... (नारास्ती-कपटता)
विश्वासों की छाया हो
आशुफ़्ता की सख्ती हो ..... (आशुफ़्ता-भ्रमित)
खड़ा मुसाफिर भीगे न जब
रिश्तों की छतनार दरख्ती हो।।
थाम ले मौला उन्हें
कुछ अपना समझकर
ज़मीर से भटके हों चाहे
कीमत गिरेबां की सस्ती हो।।
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो...

.@आनन्द

"मौलिक व अप्रकाशित
06-09-2014

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on October 7, 2014 at 8:04pm

बहुत सुंदर ..बधाई आपको 

Comment by anand murthy on September 27, 2014 at 11:43pm

प्रोत्साहन हेतु हृदयतल से आभार !

Comment by Abhinav Arun on September 27, 2014 at 7:31pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!

Comment by Chhaya Shukla on September 27, 2014 at 1:15pm

 आ. आनंद मूर्ती जी,

एक अलग अनुभूति मिली आपकी 
समरस भावना से पूर्ण नज्म पढकर 
सादर बधाई आपको 

Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 9:37pm

आदरणीय आनंद मूर्ती जी,

इस समरसता की भावना से परिपूर्ण खूबसूरत नज्म के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।"

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:44pm

सुंदर भाव रचना प्रस्तुति के लिए बधाई श्री आनंद मूर्ति जी 

Comment by Pawan Kumar on September 14, 2014 at 3:13pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति भईया ... सादर बधाई !

Comment by Shyam Narain Verma on September 13, 2014 at 10:02am
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service