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गंगा की मछली (लघु कथा) // शुभ्रांशु पाण्डेय

“खाना… पानी सब देने के बाद भी जब देखो मुँह उतरा ही रहता है.” तुनकते हुये बहु ने सास के सामने टेबल पर खाने की प्लेट पटक दी...

सास ने अपने बेटे को आंखो की पनियायी कोर से देखा....

वो तो तन्मयता से टीवी पर गंगा में आक्सीजन की कमी से मर रही मछलियों के बारे मे न्यूज़ देख रहा था.

*******************

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 1:55pm

आदरणीय गणेश भैया,

सास और मछली की स्थिति का आकलन करे तो और ज्यादा साफ़ होगा.

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 6:10pm

एक मर्मस्पर्शी कथा की प्रस्तुति हुई है, बधाई शुभ्रांशु भाई. एक बात अवश्य जानना चाहूँगा कि शीर्षक ..गंगा की मछली क्यों ?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 4:13pm

प्रस्तुत लघुकथा में जिस ढंग से मानवीय मनोविज्ञान को पिरो कर संदर्भ प्रस्तुत किये गये हैं वह इस शैली का अन्यतम उदाहरण है. इस अत्यंत प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई.

यह है सत्संग का फल ! अच्छी पकड़ बन रही है इस विधा पर.
शुभ-शुभ
 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 3:59pm

आप लोगों का मार्गदर्शन है आदरणीय विजय निकोर जी. धन्यवाद.

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 3:58pm

घन्यवाद आदरणीय जवाहर लाल जी.

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 3:57pm

धन्यवाद आदरणीया महिमा जी. 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 3:57pm

इस मंच के गुनी जनों के मार्गदर्शन से ही कुछ लिखपाता हूँ आदरणीय जितेन्द्र जी. कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद. 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 3:55pm

लघु कथा पर समय देने के लिये घन्यवाद.आदरणीय धर्मेन्द्र जी.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 8:17pm

सुन्दर प्रस्तुति!

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 4:38pm

इस सार्थक सफ़ल लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय शुभ्रांशु जी।

कृपया ध्यान दे...

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