For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यदि मैं भी रावण बन जाऊँ।
इन्द्रिय लोलुप इन्द्र विरुद्ध मैं, इन्द्रजीत सुत जाऊँ।
धरे लूट धन धन कुबेर जो, उसको अभी छुड़ाऊँ॥
भंग करे जो भगिनि अस्मिता, अंग भंग करवाऊँ।
घर के भेदी को तत्क्षण मैं, घर से दूर भगाऊँ॥
आँख उठाये देश तरफ वो, सिर धड़ से अलग कराऊँ।
बैरी बनकर ईश भी आयें, उनसे बैर उठाऊँ॥
नहीं देश में घुसने दूँ मैं, दसों शीश कटवाऊँ।
कर विकास निज मातृभूमि का, लंका स्वर्ण बनाऊँ॥
वैज्ञानिक तकनीकि उन्नति, स्वर्ग धरा पर लाऊँ।
शनि सम क्रूर जनों को अपने, वश कर नाच नचाऊँ॥
पवन, अग्नि, जल, सूर्य, चंद्र को, निज अनुकूल बनाऊँ।
वयं रक्ष सह शांति मंत्र यह, जन- जन में पहुंचाऊँ॥

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 25, 2013 at 9:41pm

आदरणीय विनय जी  , अच्छा हुआ   आप रावण नहीं बने , वरना इतने अच्छे रावण को राम कैसे मार पाते , और हम विजयादशमी का त्यौहार भी नहीं मना पाते । नई  सोच लिए  अच्छी रचना ..... बधाई 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 25, 2013 at 2:50pm

जी ..उजला पक्ष रावण का ..! बढ़िया तरीके से ...बढ़िया बात कही है आपने !... अच्छी लगी ...बधाई कबूल करें :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 10:36am

आदरणीय भाई जी सकात्मक भाव पक्ष बेहद अच्छा लगा किन्तु मेरे मन में भी वही बात एवं विचार हैं जो कि अन्य मित्रगण एवं आदरणीय श्री सौरभ सर जी ने कहा है. बेहतरीन रचना हेतु बधाई स्वीकारें

Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 5:16am

रचना में आपने रावण की नकारात्मक पहलुओं को भूलकर उसके सकारात्मक पहलुओं के अनुसार कार्य करने पर बल दिया है.... कई बड़े बुज़ुर्गों ने भी कहा है कि बुरे व्यक्तियों से बुराइयों की बजाय उनकी अच्छाईयाँ ग्रहण करनी चाहिए...... आपने वही किया है.... लेकिन फिर भी रावण की छवि युगों-युगों तक वैसी ही बनी रहेगी जैसी कि अब है..... शायद हम उसकी अच्छाईयाँ ग्रहण करने में भी हिचकिचाते हैं................ रचना में भाव अच्छे हैं इस हेतु बधाई आ0 विन्ध्येश्वरी भाई...

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 25, 2013 at 12:52am

रावण का दूसरा पक्ष अच्छा लगा !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 6:13pm

आदरणीय विन्देश्वरी भाई , रचना बहुत भली लगी , आपको बधाई !!! विचार पचा नही पाया !!! रावण अंत तः रावण होता है !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 2:34pm

ईहो नीमन.. .  :-)))

वैसे बिम्ब का एक पक्षीय आचरण बहुत भा रहा है. मूलभूत दोष जो उसकी सभी अच्छाइयों पर भारी पड़े वे मद और मत्सर थे. भाईजी, मौका आने पर कितने मठाधीश इससे अछूते रहे हैं ?...  हा हा हा हा.......

इस कविताई के लिए वाह-वाह ..

शुभ-शुभ नहीं कहूँगा.. :-))))

पद विधा को बहुत दिनों बाद काव्य में प्रयुक्त होता देख रहा हूँ.

Comment by annapurna bajpai on October 24, 2013 at 12:57pm

आ0 विधयेशवरी जी अपने रावण बनने की मनोभिलाषा रखी है लोग तो अपने बच्चों के नाम तक नहीं रखते क्योंकि वे उसे बुराई का जनक मानते है । सुंदर रचना पर बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 24, 2013 at 10:25am

आदरणीय विनय जी अभी तक मैंने रावण का नकारात्मक पहलू ही देखा था आपने रावण का सकारात्मक पहलू सामने रखा है बहुत खूबसूरत रचना बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
11 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service