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गजल: जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती

बह्र: 1222/1222/1222/1222

मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती


सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती

ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती

-शकील जमशेदपुरी
—————————————————
*मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 1013

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 6:17pm

वाह शकील साहब .. किस सफ़ाई से पिरोया है आप ने हर अशआर को ... जैसे मला के मोती ...क्या बात, क्या बात क्या बात  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 12:18am

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती

दो शेर, दोनों शेर का आकाश कितना अलग ! लेकिन कितना विस्तृत !

पूरी ग़ज़ल असीम संभावनाओं से भरी हुई है. आपकी ग़ज़लों और रचनाओं का इंतज़ार रहेगा. 

विश्वास है, सुधीजनों द्वारा बताये गये सुझावों पर ध्यान देंगे. शुभेच्छाएँ

Comment by शकील समर on October 12, 2013 at 9:08am

आदरणीय वीनस जी,
सबसे पहले तो आभार आपका। जो थोड़ी बहुत बह्र और गजल शिल्प की समझ विकसित कर पाया हूं, वो आपकी ही बदौलत है। आपने जो इस्लाह किया है, उसके लिए धन्यवाद। आगे भी ऐसी ही अपेक्षा रहेगी। एक बार पुन: आपका आभार इतनी विस्तृत विवेचना के लिए।

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:03am

कमाल धमाल बेमिसाल ग़ज़ल कही है भाई ,,,, एक एक शेर कबीले तारीफ़

मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती........... जिंदाबाद


सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती............. जिंदाबाद

ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती ........ कभी के बाद भी शब्द भर्ती का है इसे हटाना होगा ,, शेर अच्छा है

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती ........ अच्छे ढंग से कहा ... बहुत खूब

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती ............ बेमिसाल शेर है ... जितनी तारीफ़ करू कम

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती ............ बहुत खूब . सही लफ्ज़ जेह्न २१ होता है

Comment by वेदिका on October 9, 2013 at 11:38pm

मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती,, उफ उफ...समां बाँध दिया मतले ने  

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती.... ईमानदारी हद से भी ज्यादा खूबसूरती से पेश हुयी

इतनी खूबसूरत गज़ल पर दिली दाद कुबुलें !!

Comment by ajay sharma on October 9, 2013 at 10:57pm

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती,,,,,,nayab .....shandaar .....utkrast......

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती............wah wah wah wah 

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती...............kya kahoo ........no words .....lots of thanks ...for sharing this class of poetry ...........

Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 9, 2013 at 11:45am

waah waah waah ... aapne to gajab dha diya शकील जमशेदपुरी saahab .... is gazal ki jitni bhi tareef ki jaaye kam hai .... aakhiri ke char sher bahut hi umda hai .... bahut bahut badhai ... aur is star ki rachna ham logon tak pahunchaane ke liye dher sara dhanyavaad bhi

 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 9, 2013 at 8:27am

जनाब शकील साहिब ....आपने दिल छू लिया 

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती....बेमिशाल 

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती....उम्दा :)

Comment by vandana on October 9, 2013 at 6:53am

ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से 
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती.

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय शकील जी 

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 5:25am

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती..... वाह.... क्या शेर कहा आदरणीय शकील भाई.... बधाई स्वीकारें...

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