For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामभरोसे - (रवि प्रकाश)

थोथे सपने
उथली नींदें
स्वप्नलोक भी
रीता है।

सारा जीवन
कुरुक्षेत्र है
भूख हमारी
गीता है।

अट्टहास कर
रावण नाचे
बंधन में फिर
सीता है।

किसने सागर
पी डाला है
किसने अंबर
जीता है।

हम क्या जानें
वक़्त हमारा
रामभरोसे
बीता है।

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on October 4, 2013 at 2:15pm
आ॰ विजय जी एवं गीत जी, सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें।
Comment by विजय मिश्र on October 4, 2013 at 1:07pm
पुनः एक सुंदर कविता दियी . बधाई स्वीकारें रविजी .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2013 at 12:02pm

सुंदर भाव, अति सुंदर रचना बधाई आदरणीय रवि जी

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 4, 2013 at 9:11am

सुंदर... बहुत सुंदर...

हार्दिक बधाई स्वीकारें आ भाई रविप्रकाश जी...

Comment by Ravi Prakash on October 3, 2013 at 10:50pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 10:26pm

आपका यह सुंदर भावात्मक रामभरोसे गीत बहुत अच्छा लगा बहुत बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2013 at 10:17pm

आपने ये चाहे जो कुछ भी लिखा है क्या खूब लिखा है क्या प्रवाह क्या लय,शब्द संयोजन भाव सम्प्रेषण कहीं कोई कमी नजर नहीं आई ,इस रचना पर बहुत- बहुत बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 9:44pm

 //आप ही समझाएँ कि ये मैंने क्या लिख डाला है//

आदरणीय रवि जी आपने टैग्स में इसे नवगीत लिखा है जिससे उपजी जिज्ञासावश मैंने आपसे जानना चाह था! 

छंद विधान समूह में नवगीत पर दो लेख हैं, कृपया उन्हें देख लें.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 9:25pm

भाव संप्रेषण की दशा अति उच्च है. आपको आपकी प्रस्तुत रचना पर हार्दिक बधाई.

किन्तु, आपकी एक धन्यवाद-प्रतिक्रिया अचानक गंभीर कर गयी.
आप शिल्प के प्रति अवश्य निष्ठावान हों
सादर

Comment by Ravi Prakash on October 3, 2013 at 8:57pm
आ॰ बृजेश जी, मैं नवगीत के शिल्प से परिचित नहीं। कृपया आप ही समझाएँ कि ये मैंने क्या लिख डाला है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service