For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ दरीचा हो यहाँ पर

भूख थी जेरे बह्स  और प्यास भी था मुद्द'आ 

फैसला होना नहीं था, मुल्तबी वह फिर हुआ 

 

रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी 

और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ

 

लाख बोलो  कान पर,जूँ  तक नहीं अब रेंगता 

क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ  या बददुआ

 

हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना  नहीं  

चाहे  संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ 

 

वारदातें भी रहम की मांगती हैं  हर नज़र

कुछ दरीचा हो यहाँ पर, हर तरफ खुलता हुआ  

 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 27, 2013 at 5:56am

वारदातें भी रहम की मांगती हरसू  नज़र

इक दरीचा हो कहीं पर, उस तरफ खुलता हुआ  

 

मेरे प्रिय वीनस भाई

‘मुद्द'आ’ उर्दूदां लोग जब उच्चारण करते हैं तो ‘मुद्दुआ’ ही करते हैं. और आ. दुष्यंत कुमार ने भी इसका प्रयोग इसी तरह किया है. आज तक किसी आलोचक ने ऊँगली नहीं उठाई. यह शुद्ध है. देखें -

“भूख है तो सब्र कर,रोटी नहीं तो क्या हुआ

आजकल दिल्ली में है, जेरे बहस ये मुदद’आ

 

आप पहले व्यक्ति हैं. इसलिए आप असाधारण हैं.

आपने हौसला आफजाई की शुक्रिया. सादर 

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:00am

वारदातें भी रहम की मांगती हैं  हर नज़र

कुछ दरीचा हो यहाँ पर, हर तरफ खुलता हुआ 


वाह वा इस शेर ने तो लाजवाब कर दिया

मतले में मुद् दआ के साथ हुआ  काफ़िया कैसे चला लिया सर जी ???

Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 6:01pm

आदरणीय आपका आभार!

Comment by Ketan Parmar on July 19, 2013 at 11:48am

लाख बोलो  कान पर,जूँ  तक नहीं अब रेंगता

क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ  या बददुआ

 

हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना  नहीं  

चाहे  संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ

umdaa sher karamati

Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:37am

रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी 

और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ

वाह वाह! समाजी और सियासी तेवर की ग़ज़ल, बेबाक अशआर, बहुत खूब!

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 19, 2013 at 9:13am

आदरणीय मेरे विचार से रेंगती अधिक उपयुक्त होगा।

 man gaye

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 12:09pm

बहुत ही सुन्दर बात कही आपने! आपको मेरी हार्दिक बधाई!
एक निवेदन करना चाहता हूं कि इस पंक्ति को देखें-

//लाख बोलो  कान पर,जूँ  तक नहीं अब रेंगता// 

आदरणीय मेरे विचार से रेंगती अधिक उपयुक्त होगा।
सादर!

Comment by MAHIMA SHREE on July 17, 2013 at 9:01pm

रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी 

और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ

 

लाख बोलो  कान पर,जूँ  तक नहीं अब रेंगता 

क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ  या बददुआ.... बहुत ही सही फ़रमाया आदरणीय .हर  आमजन की बात कहती उम्दा गजल के लिए बहुत -२ बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 17, 2013 at 7:07pm

रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी 

और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ...बहुत खूब! 

सुन्दर सामयिक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आ० डॉ० ललित जी 

सादर.

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2013 at 5:48pm

कुछ उर्दू शब्दों के रचना के निचे अर्थ लिखे तो अधिक आनंद आयेगा डा. साहब | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
20 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
23 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
23 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
23 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service