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                           ग़ज़ल



महबूब   मेरे   सूरत   तेरी,   मुझे   इतनी   प्यारी   लगती   है |
सौ  जन्मों  से  भी  पहले  की,  तेरी  -  मेरी   यारी   लगती   है ||


तेरा  प्यार  मेरी रग़ - रग़ में बसा है, बन के नशा हमराज़ मेरे,
एक  पल  की   भी  तन्हाई  मुझे,  कातिल  दुश्वारी  लगती  है ||


तेरे   प्यार   में   इतना   डूबा   हूँ,  ये   देख   मेरा   दीवानापन,
मुझको  तो  खुदा  की  सूरत भी,  तस्वीर  तुम्हारी  लगती  है ||


तेरी बाँहों में हर पल  रहने  से,  बढ़  के  ख़ुशी  मैं  क्या  चाहूं ?
ज़न्नत  से  हसीं - रंगीन मुझे,  दुनिया  ये  हमारी  लगती  है ||


नज़रों  से  कहीं  छुप  जाना  न, बाँहों से  जुदा  मत  हो  जाना,
एक  तेरे  बिना  मुझे दोज़ख सी,  ये  दुनिया  सारी  लगती है ||


कुछ शब्दों में दिल की हशरत, दिल की खुशियों का है यूँ बयां,
कुदरत  ने  तेरी  सूरत  में  मेरी,   तस्वीर  संवारी,  लगती  है ||

                                             रचनाकार- अभय दीपराज


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