ग़ज़ल
छोटे से दिल में दुनिया का, दर्द छुपाये फिरता हूँ |
आंसू के फूलों से अपनी, लाश सजाए फिरता हूँ ||
अपना बनकर दिल को लूटना, है दस्तूर ज़माने का,
मैं ऐसे ही कुछ रिश्तों पे, खुद को लुटाये फिरता हूँ ||
ख्वाब है केवल, अफसाना है, इश्क, मोहब्बत और वफ़ा,
अपने दिल के अरमानों की, खाक उठाये फिरता हूँ ||
दुनिया में आकर सोचा था- खुशियों के सागर खोजूं ,
लेकिन ऐसे ज़ख्म मिले हैं , दिल को दवाये फिरता हूँ ||
बनकर इन्सां ये चाहा था- मेरी हस्ती चाँद बने ,
आज उसी अरमां की लौ से, दिल को जलाये फिरता हूँ ||
दर्द बना है जीवन मेरा, खुद पे मैं शमिन्दा हूँ ,
गम के एक क़ातिल तूफां को दिल से लगाये फिरता हूँ ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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