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वो दिखे ही नहीं इन दिनों 

दूज का चन्द्रमा हो गए 

इतने बीमार हम भी नहीं 

अपनी खुद ही दवा हो गए 

हैं सु-फल आपकी दृष्टि के 

क्या थे हम और क्या हो गए 

लोग सुनते हैं अब शौक से 

अपने चर्चे कथा हो गए 

कल की किलकारियां याद हैं 

दर्द देखो युवा हो गए 

खेल कर के कहीं रख दिया 

यार,हम झुनझुना हो गए 

अक्स चेहरे का आँखों में है 

हम स्वयं आइना हो गए 
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 9:47am

वाह वा 

शानदार गीतिका के लिए ढेरो ढेर बधाई ....

Comment by राजेश 'मृदु' on June 17, 2013 at 1:24pm

क्‍या कहने, आपको आपके ही रंग में पढ़ना एक पुरस्‍कार से कम नहीं है, सादर

Comment by विजय मिश्र on June 17, 2013 at 12:56pm
सुन्दर कविता के लिए बधाई .
Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 15, 2013 at 11:21pm

सभी मित्रों सर्वश्री D P Mathur ji,Ram Shiromani Pathak ji,Shyam Narayan Varma ji,Sumit Naithani ji,Kewal Prasad ji,Jitendra Parsariyaa ji ,SUSHREE Coontee Mukerji ji,Meena Pathak ji,Vijayashree ji के सराहना के शब्दों का स्नेहिल आभार !

Comment by D P Mathur on June 15, 2013 at 7:58pm

खेल कर के कहीं रख दिया
यार, हम झुनझुना हो गए !

आपकी इस प्यारी रचना के
पढ़कर हम फैन हो गये !
डी पी माथुर

Comment by ram shiromani pathak on June 15, 2013 at 7:18pm

आदरणीया विश्वम्भर सर जी बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है अपने //हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on June 15, 2013 at 6:41pm

बहुत सुंदर रचना ......सादर / कुंती.

Comment by Meena Pathak on June 15, 2013 at 6:34pm

खेल कर के कहीं रख दिया 

यार,हम झुनझुना हो गए 

बहुत सुन्दर ... बधाई 

Comment by vijayashree on June 15, 2013 at 6:23pm

...हम झुनझुना हो गए

 अति सुंदर भाव / हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2013 at 12:47pm

आदरणीय...उम्दा रचना के लिए शुभकामनाऐं.......................

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