For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रंग भरे

फागुन के चेहरे

संग रीता

सुख चैन

टनटन करती

भाग रही फिर

अग्निशमन की वैन

होंठ चाटता

बेबस राजू

सोच रहा

फिर आज

चूते छप्‍पर

सर्द रात दे

तुष्‍ट नहीं क्‍यों ताज

तैर रही

उसकी आंखों में

मात-पिता की देह

आवास इंदिरा

के नीचे ही

कुचल गया

जो नेह

है तो वो

जनजाति का पर

पाए कहां प्रमाण

दैन्‍य रेख पर

अमला बैठे

युद्ध नहीं

आसान

फटकार मिली जब

स्‍कूलों से

थे मुखिया, नेता

मौन

मन मसोसकर

चाय पकड़ ली

राह  दिखाए कौन

बहिना भी तो

हुई सुहागिन

कट्ठे-डंडे बेच

चू पड़ते हैं

अब झोंपड़ के

खूंटे, रस्‍सी, पेंच

तिसपर फिर से

जेठ चलेगा

चाबुक को

फटकार

चिंगारी की

मुहर लगेगी

हर गरीब के द्वार

सोच रहा है

राजू फिर से

किसको देगा वोट

पेट पुकारे

रोटी-रोटी

झोंपड़ मांगे

नोट

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 11:33pm

कई योजनाएं फिर भी परिस्थितियाँ जस की तस हैं. बहुत सुन्दर रचना में आपने इस दर्द को उभारा है. आदरणीय राजेश जी सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 5:57pm

आदरणीय संदीप जी, रचना आपको अच्‍छी लगी हमें संतुष्टि मिली, ये कविता उस सच्‍चाई पर आधारित है जिसे मैंने बड़े करीब से देखा है हर गरीब के पास दो ही विकल्‍प होते हैं वोट या नोट क्‍योंकि वह जानता है कि वोट देने से उसकी समस्‍या नहीं मिटेगी अत: वह वोट को नोट से तौलने लगता है और हर उस दल के झंडे उठाता है जो उसे नोट दे सकते हैं, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 5:55pm

आदरणीय कुंति मुकर्जी साहिबा, आपने बिलकुल सत्‍य कहा राजू हर गरीब में जीता है आपका हार्दिक आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 5:54pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका हार्दिक आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 10:56am

आदरणीय राजेश जी सादर प्रणाम
बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है आपने इस रचना में
ग़ज़ब की परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है एक ग़रीब आदमी को
और उसके पास विकल्प कम होते हैं
बहुत ही जोरदार रचना के लिए बधाई स्वीकार करें

Comment by coontee mukerji on April 10, 2013 at 10:57pm

हर गरीब इंसान जो राजू के शरीर में जीता है..साल दर साल उसकी यही समस्या है . समाज का बड़ा ही नाजुक नब्ज पकड़ा है आपने

राजेश जी . बधाई .

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 9:13pm

सोच रहा है

राजू फिर से

किसको देगा वोट

पेट पुकारे

रोटी-रोटी

झोंपड़ मांगे

नोट//////////////// bahut hi marmik chitran kiya hai apne adarneey jha ji ....hardik badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service