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फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा

गीत रूठे हुए  मीत छूटे हुए
फिर भी रस्में ये सारी निभा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा

आप सो जाइये ओढ़ कर बदरियाँ
मुझको इस धूप में और जलना अभी
लक्ष्य संसार के हों समर्पित तुम्हें
मुझको इक उम्रभर और चलना अभी
मन के मंदिर में बस तुम ही तुम देव हो
प्रीत के कुछ सुमन फिर चढ़ा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा

रंग यौवन के जब सब उतरने लगें
फूल जब नेह के सारे झरने लगें
मुझको अंजाँ समझ कर बुला लेना तुम
दोस्त जब दोस्ती से मुकरने लगें
ये है मुझको पता लक्ष्य मैं तो नहीं
फिर भी रस्ते तुम्हें सब बता जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 29, 2013 at 6:12pm

गीत रूठे हुए  मीत छूटे हुए
फिर भी रस्में ये सारी निभा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा----पुश्यमित्र जी इन पंक्तियों ने दिल मोह लिया बहुत-बहुत बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 2:14pm

अंतरगेयता से समृद्ध पंक्तियाँ वहीवहीपन लदे बिम्बों पर आश्रित हों, यह रुचिकर नहीं लगा है. संप्रेषणीयता सहज है.  आपके रचनाकर्म की संभावनाओं के कारण आपसे बेहतर और समृद्ध की अपेक्षा है, भाईजी.

शुभेच्छाएँ

Comment by Pushyamitra Upadhyay on March 28, 2013 at 7:47pm
saadar abhar sir ji....holi ki anant shubhkaamnaayein
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2013 at 8:43am

रंग यौवन के जब सब उतरने लगें,फूल जब नेह के सारे झरने लगें
मुझको अंजाँ समझ कर बुला लेना तुम,दोस्त जब दोस्ती से मुकरने लगें,
ये है मुझको पता लक्ष्य मैं तो नहीं,फिर भी रस्ते तुम्हें सब बता जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं,फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा| - सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए होली की शुभ कामनाओं सहित हार्दिक आभार श्री उपाध्याय जी 

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