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मैं तृप्त नहीं .....क्यों

एक सतह इस धरती पर, धूल , फूल और वृक्ष हैं फैले
एक सतह मन के धरती पर, अंतस तक यादों के झूले
दूर दूर तक आँखों का ताकना, राह वही पर पथिक न मेले
गति और मति दोनों ही संग में , कहाँ किसे अपने संग ले लें ,

कितनी दूर चलोगे संग में वो अदृश्य जो हाथ बढाता
मैं उसकी वो मेरा प्रति पल, गहरा है उससे ये नाता
कुछ हंसती यादों के संग तुम , कुछ भूली यादों का नाता
तृप्त नहीं मैं इस जीवन से दृश्य , अदृश्य नहीं है भाता

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Comment

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Comment by SUMAN MISHRA on December 10, 2012 at 9:34pm

सभी आदरणीय जन को मेरा आभार,,,,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 10, 2012 at 12:44pm

अपने अंतर्मन में विचारों के ताने बाने बुनती सुन्दर कविता -बधाई स्वीकारे 

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 10, 2012 at 7:34am

wah bhut khoob..................

एक सतह इस धरती पर, धूल , फूल और वृक्ष हैं फैले

एक सतह मन के धरती पर, अंतस तक यादों के झूले

दूर दूर तक आँखों का ताकना, राह वही पर पथिक न मेले

गति और मति दोनों ही संग में , कहाँ किसे अपने संग ले लें>>>>

Comment by vijay nikore on December 9, 2012 at 11:59am

कुछ हंसती यादों के संग तुम , कुछ भूली यादों का नाता
तृप्त नहीं मैं इस जीवन से दृश्य , अदृश्य नहीं है भाता

बहुत खूब!

विजय निकोर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2012 at 9:15am

कितनी दूर चलोगे संग में वो अदृश्य जो हाथ बढाता
मैं उसकी वो मेरा प्रति पल, गहरा है उससे ये नाता

आहा ! अनंत की गहराइयों में ले जाती रचना अंतस मन पर गहन प्रभाव छोड़ने में सफल है, अत्यंत ही खुबसूरत और प्रवाहमय रचना , बहुत बहुत बधाई |

Comment by ajay sharma on December 8, 2012 at 10:02pm

गति और मति दोनों ही संग में , कहाँ किसे अपने संग ले लें ,  kabhi kabhi jiwan me aise moments ate hai jab yahi situation hoti hai , jise bakhobii apne shabdo se ukera hai ;;;kya khoob  ...rachna me kuch aur band ki pratiksha rahegi 

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