For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है

कुछ मुझी में प्यार मेरा, इस कदर आबाद है,
कैद में दुनिया है मेरी, दिल मेरा आज़ाद है।

पाँव थमते ही नहीं, अब मंजिलों पर भी मेरे,
ये मेरी आवारगी, शायद मेरी हमजाद है।


कुछ दिनों से चाय की प्याली नहीं खनकी यहाँ,
बिन तेरे बिखरी रसोई, क्या कहाँ, कब याद है।

है जवानी भूलती इस बात को ना जाने क्यूँ,
इक बुढ़ापे ने ही इस घर की रखी बुनियाद है।

दिल को मेरे है शिकायत जाने कितनी, हमनवां,
कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है।

Views: 599

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 12, 2012 at 9:02am

बहुत सुन्दर.......बधाई !

Comment by वीनस केसरी on November 11, 2012 at 3:02pm
तगज्जुल, तखय्युल, तवज्ज़ुन, और तगय्युल  का बेहतरीन नमूना पेश किया

मुबारकबाद क़ुबूल करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 11, 2012 at 2:30pm
दिल को मेरे है शिकायत जाने कितनी, हमनवां,
कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है।----बहुत जबरदस्त शेर बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अरविन्द कुमार जी 

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 9, 2012 at 8:42pm

जनाब अरविन्द कुमार जी,,,, उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक बाद,,,, ये शेर तो हासिले ग़ज़ल है,,,,पाँव थमते ही नहीं अब मंजिलों पर मेरे ,, ये मेरी आवारगी शायद मेरी हमजाद है ,,,,,, ऐ है,,, वाह वा ,, क्या बात है ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 9, 2012 at 6:30pm

भाई अरविन्द जी ने बेहतर ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है.  

कुछ दिनों से चाय की प्याली नहीं खनकी यहाँ,
बिन तेरे बिखरी रसोई, क्या कहाँ, कब याद है।

यह अच्छा शेर लगा. प्रयास और बेहतर होता रहे. शुभकामनाएँ.

Comment by Arvind Kumar on November 9, 2012 at 1:46pm

धन्यवाद प्रदीप जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 9, 2012 at 1:23pm

दिल को मेरे है शिकायत जाने कितनी, हमनवां,
कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है।

अरविन्द जी सादर 

खूब सूरत. बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना।  मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना। वो तो गाथा भी लिखें…"
4 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस विधा पर आपका अभ्यास श्लाघनीय है. किंतु आपकी प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service