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तकलीफ ये नहीं यारों की जमाना बदल रहा है

 
तकलीफ ये नहीं यारों की जमाना बदल रहा है
मगर तहजीब नहीं भूली जाती तरक्की के साथ
 
उड़ाने भरने के साथ ही पंछी भूल नहीं जाते
की ताल्लुक क्या है उनका इस जमीन के साथ

 

दिया जलाये रहे आशाओं के बड़े जोश के साथ
हमें मालूम है की चल रहे है समंदर के साथ
 
उनसे हो पूंचते है सवाल अक्सर इस ज़माने में
जो जी रहे है जिन्दगी बड़े खुलूश के साथ
 
उनसे फरियाद कैसी और क्यों करे "अफजल "
जो दामाद सा रिश्ता जोड़ के बैठे है तेरे साथ
 
होंठो की हसी और मेरे आंख में करकट है का बहाना
इस दरिया का बड़ा गहरा रिश्ता है तेरे ही साथ
 
मैयत पर कफ़न नहीं यहाँ फूल मिलते नहीं यश
कैसे लोग है जो गए है मंदिर भरी टोकरी के साथ
 
 
 
 

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Comment

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Comment by yogesh shivhare on June 17, 2012 at 2:52pm

आदरणीय प्रदीप जी आभार ...इन पंक्तियों को अपने सब्दो के फूल समर्पित करके नवाज़ा शुक्रिया 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 1:29pm

उड़ाने भरने के साथ ही पंछी भूल नहीं जाते

की ताल्लुक क्या है उनका इस जमीन के साथ
बहुत ही सुन्दर, बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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